मैं किसी के प्यार का भटका हुआ उद्गार हूँ
main kisi ke pyar ka bhatka hua udgar hoon
कृष्ण मुरारी पहारिया
Krishna Murari Pahariya
मैं किसी के प्यार का भटका हुआ उद्गार हूँ
main kisi ke pyar ka bhatka hua udgar hoon
Krishna Murari Pahariya
कृष्ण मुरारी पहारिया
और अधिककृष्ण मुरारी पहारिया
मैं किसी के प्यार का भटका हुआ उद्गार हूँ
आँसुओं से धुल गया मुख का विगत शृंगार हूँ
वर्जनाओं के सहे कितने झकोरे
उम्र के वे पृष्ठ सारे रहे कोरे
जागरण में मैं जिन्हें छू तक न पाया
स्वप्न में वे ही उभरते हाथ गोरे
शून्य में बजते, अदेखे तार की झंकार हूँ
हर अस्वीकृति को किया स्वीकार मैंने
मानकर सबका बड़ा आभार मैंने
कल जिन्होंने प्यार की पाती पढ़ाई
बंद उनके आज देखे द्वार मैंने
एक विरही प्राण का टूटा हुआ संसार हूँ
- पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 52)
- रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
- प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
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