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पहाड़ी के पत्थर

pahaDi ke patthar

अनिल मिश्र

अनिल मिश्र

पहाड़ी के पत्थर

अनिल मिश्र

और अधिकअनिल मिश्र

    हवा दिशा बदलती है और पानी अपने रास्ते

    इन पत्थरों पर बैठकर आसमान अपने कपड़े बदलता है

    लाखों वर्षों से निश्चल निर्विकार पड़े

    एक विशाल शिलाखंड पर

    कभी-कभी आती है एक थकी उड़ान

    और छोड़ जाती है कोई टूटा हुआ पंख

    अपनी कमर में डलिया बाँधे स्त्रियाँ आती हैं

    और आँसुओं से तर कर जाती हैं पहाड़ी की छाती

    उनके साथ आते हैं बच्चे

    और लगातार कुछ समझाते रहते हैं पत्थरों को

    कभी-कभी आता है हारा हुआ प्रेम

    और किसी शिला के सीने से लिपट कर बहुत होता है

    जिस में घुस नहीं पाती लोहे की नुकीली छेनी

    उन्हीं प्रस्तरों को चीरती

    घुसती जाती है कोमल पौधे की मुलायम जड़

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनिल मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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