बिना कुत्तों की इस बस्ती में भौंकते हैं काले अक्षर,
कोई शायद पहचानता है मेरे पैरों के निशान
पहचानता है मुझे इन जंगलों में।
तुम बरसों से पड़े हो मेरे पीछे
बरसों मेरा पीछा किया है तुमने
तुमने क्या पहचाना?
मेरी गंध? मेरे लहू में तो नहीं है मिट्टी की ज़रा भी बास!
किस संकेत पर दौड़े आए इस ओर?
मेरे पदचिह्न तो पड़े हैं हज़ारों पदचिह्नों में,
उन पर फिरे हैं हज़ारोंं वाहनों के पहिए,
तुम्हें कौन-सी पहचान मिली, कौन-सी निशानी?
अपनी परछाईं को मैं हमेशा कपड़ो के साथ पहन लेता हूँ
आसपास फैली हवा को
काट देता हूँ हँसिए जैसी साँस से
तुमसे मैं कहाँ मिला?
तारों से मेरी दोस्ती नहीं
सूरज को हमेशा दी हैं गालियाँ
चाँद को खाने को हमेशा मुँह बाया।
मैं किसी का होकर नहीं रहा
मैं किसी के संग-साथ चला नहीं—
बोला नहीं - ख़ुद अपने से भी नहीं।
फिर तुमसे किसने की खुसुर-पुसुर?
अँधेरे कमरे में रूठ कर बैठे आँसुओं में
मैंने पहली बार तुम्हें पहचाना
बेर का काँटा निकाल अँगुली पर उभर आई लहू की बूँद को
देखने में मैं मशग़ूल था तब तुमने इसे पीने को कहा था,
आधी रात को
घर के पिछवाड़े, बूचड़खाने में
क्या तुम्हीं ने बकरों को जगाया था?
और भोर में नीम पर चढ़कर तुम्ही ऊँघ रहे थे क्या?
पहली बारिश में केंचुआ बनकर तुम्हीं निकले थे क्या?
निर्जन पहाड़ी पर आँवल के फूल में तितली बन तुम्हीं छिपे थे क्या?
क्या तुम्हीं ने जगाई थी जिज्ञासा
पत्तों के रेशे-रेशे उधेड़ कुछ खोजने की?
और मोरपंख के एक-एक तंतु को अलगाने की?
कीचड़ में जमा पानी में
अनजानी भाषा में अनजाना लिखने की?
शायद तुम्हीं ने मुझसे रूपहली रात में
अकेले भटकने को कहा था
और क्या तुम्हीं ने कहा था मुझसे बाट जोहने को?
मैं किसे ढूँढ़ रहा था भीड़ में?
तुम्हीं ने कहा था न कूदने को रूपमती सरोवर में?
ऊँची पहाड़ियों से निचली पगडंडियों पर छलाँग लगाने का
उत्साह तुम्हीं ने जगाया था न?
मैं समुद्र के सामने खड़ा था
तब क्या तुम्हीं सरो के जंगल में गा रहे थे?
बदामी में ढलती शाम के समय क्या तुम्हीं मुझे
बैलगाड़ी की ढिचर-ढिचर से क़दमताल मिलाते मिले थे?
पर तुम इतनी दूर तक मेरे पीछे चले आओगे
और तुम्हीं आओगे
यह विश्वास नहीं था
और फिर भी तुम आए।
मगर तुम हर-हमेशा मेरे पीछे क्यों खड़े रहते हो?
अपना चेहरा तो दिखाओ!
- पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 20)
- संपादक : गिरधर राठी
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक वर्षा दास और विष्णु नागर
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 1994
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