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निर्देशक

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अनिल मिश्र

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अनिल मिश्र

और अधिकअनिल मिश्र

    ये दुनिया एक रंग-मंच है

    और हम उसके अभिनेता हैं

    अपने-अपने किरदार निभाते हुए

    जॉक के मुँह से शेक्सपीयर ने जब कही थी ये बात

    स्वयं भी अपने हिस्से की बड़ी भूमिका खेलकर

    समझ चुके थे पटकथा और निर्देशन के बाहर आज़ादी का मिथक

    किसी की शिकायत है कि उसकी भूमिका काटकर छोटी कर दी गई

    कोई कहता है कि वह केवल पिटता रहा पूरे नाटक में

    प्रेम, इज़्ज़त और शोहरत औरों के खाते में आए

    खलनायक अंत तक साबित नहीं कर पाया कि उसके इरादे नेक थे

    एक मज़बूरी में वो करता रहा हत्याएँ और बलात्कार

    रोटी कमाने शहर निकले युवक अकेले थे

    पता नहीं कब बीच में आया नदी में उफान और उस वेग में बस बहते गए

    हमने खुले हुए दफ़्तर और कचहरियाँ देखीं जिसके अंदर बंद रहते थे न्याय

    विशिष्ट जनों के लिए उन्हें खोला जाता था न्यायाधीश की देख-रेख में

    फाड़ कर फेंके गए प्रार्थना पत्रों को हवा में उड़ते देखा

    मंहगाई सरे आम उतार रही थी ग़रीबों के कपड़े

    पुलिस थानों में बंद किए गए थे भूखे पेट गुर्राने के अपराध में

    न्यूज चैनलों के प्रशिक्षित कैमरे

    उचित समय और उचित स्थानों पर ही

    खोलते थे अपनी आँख

    एक बहुत बड़े थियेटर पर मैंने

    जनता के चुन कर आए प्रतिनिधियों को

    एक-दूसरे पर कुर्सियाँ फेंकते और गाली-गलौज करते देखा

    शाम को वे एक महफ़िल में साथ-साथ

    जाम-से-जाम टकराते दिखे

    कहते थे उनके बीच मतभेद हो सकते हैं मनभेद नहीं

    दृश्य में ख़ूँखार जंगली जानवर

    एक युवक को दबोचकर

    बेतरह सीने पर बैठ जाता है

    वह तो उसे मारता है उठने देता है

    शायद उसे आनंद आने लगा है युवक की निरुपायता देखकर

    दर्शक क़ैद कर रहे हैं इस दृश्य को

    अपने कैमरों में बनाते हुए रील

    हज़ारों देख रहे हैं इस लोमहर्षक घटना को लाइव

    लाखों कमेंट्स हैं करोड़ों लाइक

    मैने देखा रात को और काले रंग से रंगा जा रहा है

    विरोध करने वालों को पीटकर लाठी डंडों से भगा दिया गया है

    दीए अपनी रोशनियों के पीछे छिपकर इस वक्त के कटने का इंतज़ार कर रहे हैं

    तमाम प्रशासनिक फैसले

    अपनी शब्दावलियों और मुहाबरों के बोझ के नीचे दबे दम तोड़ देते हैं

    गुजरती पीढ़ी को लगता है कि

    नई पीढ़ी के सॉफ्टवेयर में

    अवश्य ही कोई छोड़े जाता है ख़तरनाक मालवेयर

    मैंने मासूमों को दुर्दांत अपराधियों में बदलते देखा

    अपनी संतानों की असाध्य बीमारियों

    के इलाज़ करा पाने की असमर्थता से लाचार स्वाभिमान घायल गिरते दिखे

    मैंने देखा एक व्यक्ति घर वापस नहीं लौटना चाहता

    क्या उत्तर देगा अपनी बेटी को कि कल से सब ठीक हो जाएगा

    कर्ण भेदी बिस्फोटकों के कारख़ाने

    विश्व संगीत सम्मेलन के आयोजक बन गए

    बाघ सिंह और लकड़बग्घों के ऑर्केस्ट्रा में हिरणों का नाचना अनिवार्य कर दिया गया

    लय भी उनकी ताल भी उनका

    कुछ परछायियाँ अपने शरीरों से अलग होकर परदे पर थिरकती नज़र आईं

    प्रसंग और प्रयोजन की तयशुदा योजना पर

    कलाकारों के उम्दा अभिनय और दृश्यों के बीच खोया

    मैं देख ही नहीं पाया पीछे बैठे निर्देशकों की पूरी एक टीम

    और उनकी उँगलियों के इशारे

    नृत्य और गान के मनोरंजन में

    इस तरह खोए रहे हम

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनिल मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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