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शब्दो, तुम न आओ

shabdo, tum na aao

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

वीरभद्र कार्कीढोली

शब्दो, तुम न आओ

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    बहुत गीत लिखे, गाए

    पर उसका मन किंचित् भी पिघला सका

    कहो, शब्दो, कहो

    कैसे शब्दों से

    कैसे गीत लिखूँ मैं

    शब्दो! मेरे गीत

    अब भी गीत बन सके।

    बहुत कविताएँ लिखीं, सुनाईं

    पर उसका हृदय किंचित् भी स्पर्श कर सका

    कहो, शब्दो, कहो

    कैसे शब्दों से

    कैसी कविता लिख डाली मैंने—

    शब्दो! मेरी कविता

    कविता बन सकी

    कहता हूँ, लिखूँगा ही नहीं : गीत!

    कविताएँ!

    पर कविता का मोह

    क्यों जुदा नहीं होता? —सोचता हूँ!

    सोचता हूँ!

    रहने भी दो अब

    शब्दो, तुम आओ—बैशाखी के बल

    हमारे चलने का रास्ता ही नहीं है यहाँ!

    शब्दो, तुम आओ गीत के सरगम बनकर

    शब्दो, तुम आओ इस तरह

    कविता के रूपों में

    तुम्हें समझने वाला हृदय ही कहाँ है यहाँ!

    शब्दो, बार-बार मुझे इस तरह

    शूल बनकर चुभोने आओ

    स्वच्छ कविता, कवितामय होकर

    जीने की तुम्हारी स्वच्छ दुनिया ही कहाँ है यहाँ!!

    शब्दो, तुम आओ!

    तुम आओ!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 88)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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