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बनारस

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केदारनाथ सिंह

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बच्‍चों के लिए चिट्ठी

रवीन्द्रनाथ टैगोर

केदारनाथ सिंह की कविता बनारस Class-12 Hindi Sahitya Antra Bhag-2 | Banaras Class 12

केदारनाथ सिंह

नोट

प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

इस शहर मे वसंत

अचानक आता है

और जब आता है तो मैंने देखा है

लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से

उठता है धूल का एक बवंडर

और इस महान पुराने शहर की जीभ

किरकिराने लगती है

जो है वह सुगबुगाता है

जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ

आदमी दशाश्वमेध पर जाता है

और पाता है घाट का आख़िरी पत्थर

कुछ और मुलायम हो गया है

सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखों में

एक अजीब-सी नमी है

और एक अजीब-सी चमक से भर उठा है

भिखारियों के कटोरों का निचाट ख़ालीपन

तुमने कभी देखा है

ख़ाली कटोरों में वसंत का उतरना!

यह शहर इसी तरह खुलता है

इसी तरह भरता

और ख़ाली होता है यह शहर

इसी तरह रोज़-रोज़ एक अनंत शव

ले जाते हैं कंधे

अँधेरी गली से

चमकती हुई गंगा की तरफ़

इस शहर में धूल

धीरे-धीरे उड़ती है

धीरे-धीरे चलते हैं लोग

धीरे-धीरे बजाते हैं घंटे

शाम धीरे-धीरे होती है

यह धीरे-धीरे होना

धीरे-धीरे होने की एक सामूहिक लय

दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को

इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है

कि हिलता नहीं है कुछ भी

कि जो चीज़ जहाँ थी

वहीं पर रखी है

कि गंगा वहीं है

कि वहीं पर बँधी है नाव

कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ

सैकड़ों बरस से

कभी सई-साँझ

बिना किसी सूचना के

घुस जाओ इस शहर में

कभी आरती के आलोक में

इसे अचानक देखो

अद्भुत है इसकी बनावट

यह आधा जल में है

आधा मंत्र में

आधा फूल में है

आधा शव में

आधा नींद में है

आधा शंख में

अगर ध्यान से देखो

तो यह आधा है

और आधा नहीं है

जो है वह खड़ा है

बिना किसी स्तंभ के

जो नहीं है उसे थामे हैं

राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तंभ

आग के स्तंभ

और पानी के स्तंभ

धुएँ के

ख़ुशबू के

आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ

किसी अलक्षित सूर्य को

देता हुआ अर्घ्य

शताब्दियों से इसी तरह

गंगा के जल में

अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टाँग से

बिल्कुल बेख़बर!

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केदारनाथ सिंह

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स्रोत :
  • पुस्तक : अंतरा (भाग-2) (पृष्ठ 22)
  • रचनाकार : केदारनाथ सिंह
  • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
  • संस्करण : 2022

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