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बादल राग (एनसीईआरटी)

baadal raag

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

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बच्‍चों के लिए चिट्ठी

रवीन्द्रनाथ टैगोर

Badal Rag Class 12 | Class 12 Hindi Badal Rag | बादल राग कविता की व्याख्या | कक्षा 12 हिंदी बादल राग

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

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बादल राग (एनसीईआरटी)

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

नोट

प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दु:ख की छाया—

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया—

यह तेरी रण-तरी

भरी आकांक्षाओं से,

घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर

उर में पृथ्वी के, आशाओं से

नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,

ताक़ रहे हैं, विप्लव के बादल!

फिर-फिर

बार-बार गर्जन

वर्षण है मूसलधार,

हृदय थाम लेता संसार,

सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।

अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर,

क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,

गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर।

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार—

शस्य अपार,

हिल-हिल,

खिल-खिल

हाथ हिलाते,

तुझे बुलाते,

विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।

अट्टालिका नहीं है रे

आतंक-भवन,

सदा पंक पर ही होता

जल-विप्लव-प्लावन,

क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से

सदा छलकता नीर,

रोग-शोक में भी हँसता है

शैशव का सुकुमार शरीर।

रुद्ध कोष, है क्षुब्ध तोष

अंगना-अंग से लिपटे भी

आतंक-अंक पर काँप रहे हैं

धनी, वज्र-गर्जन से बादल!

त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,

तुझे बुलाता कृषक अधीर,

विप्लव के वीर!

चूस लिया है उसका सार,

हाड़-मात्र ही है आधार,

जीवन के पारावार!

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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

स्रोत :
  • पुस्तक : आरोह (भाग-2) (पृष्ठ 34)
  • रचनाकार : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
  • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
  • संस्करण : 2022

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