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नया कलेवर

naya kalevar

रचित

रचित

नया कलेवर

रचित

और अधिकरचित

    जीवन के सादे काग़ज़ पर

    कितने रंग पड़े दिखते हैं

    सोच रहा हूँ इस फागुन में

    सबको नया कलेवर दे दूँ।

    पानी वाले रंग से गढ़कर

    नाव के चेहरे जैसा सपना,

    गंगा पार तरसते दुबले

    नाविक की आँखों में रख दूँ।

    स्याह रंग से घोलूँ स्याही

    लिखकर क, जैसा कुछ भी

    पीछे वाली बेंच पे बैठे

    छुटकू के पोरों में रख दूँ।

    और ओज़ोन से परत से लेकर

    साँसों के रंग की ऑक्सीजन

    किसी पुराने अस्पताल के

    आई.सी.यू. में रखवा दूँ।

    हब्बल टेलिस्कोप से ढूँढ़ूँ

    अगर कहीं पानी मिल पाए

    राजस्थान के इक क़स्बे में

    सुबह-सुबह बारिश करवा दूँ।

    सबने फूलों के आभूषण

    पहनाए कविता-देवी को,

    सोच रहा हूँ मैं अब इनको

    कुछ मिट्टी के ज़ेवर दे दूँ।

    सोच रहा हूँ इस फागुन में

    सबको नया कलेवर दे दूँ।

    किसी रंग से सस्ता खाना,

    तीन रुपए की चाय बनाकर,

    सबसे बड़े चाय वाले के

    चश्मे पर चिपका दूँ जाकर।

    दुनिया भर की सब फ़ौजों को

    गेंदे की माला दे बोलूँ—

    सरहद पार के अपने

    जानी दुश्मन को आएँ पहनाकर।

    लहराकर मज़दूर का गमछा,

    राष्ट्रसंघ के कार्यालय से

    करूँ घोषणा—‘‘झंडा होगा

    आज से यह सारी धरती का!’’

    मंगल पर बसने से पहले,

    यह भी निश्चित करता जाऊँ

    चेहरा ज़्यादा बदसूरत

    हो जाए बूढ़ी धरती का।

    इधर-उधर की बातें मैंने

    गीतों में कितनी कर डालीं

    सोच रहा हूँ अब गीतों को

    सच्चाई का तेवर दे दूँ।

    सोच रहा हूँ इस फागुन में

    सबको नया कलेवर दे दूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रचित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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