नष्ट होने से हम इतना तो नहीं डरते थे
nasht hone se hum itna to nahin Darte the
अमन त्रिपाठी
Aman Tripathi
नष्ट होने से हम इतना तो नहीं डरते थे
nasht hone se hum itna to nahin Darte the
Aman Tripathi
अमन त्रिपाठी
और अधिकअमन त्रिपाठी
मौतों पर हम बहुत कम
लगभग नहीं के बराबर रोते थे
रुलाई जब-जब आई तब किस बात पर आई यह तो ज्ञात नहीं
पर घर जलाने को
खेत छोड़ने को
विस्थापन के बारे में सोचने को दिनचर्या समझना हमारे ख़ून में था
हम इतिहास में भ्रमण करते थे और सिर्फ़ वर्षा ऋतु में प्रवास करते थे
कभी-कभी दिल टूटता था पर इस टूटने को अपने माथे पर
हमसे बेहतर कोई क्या पहनता होगा!
हमारे पास एक कबीर था एक मीर एक नज़ीर
पर देखते-देखते यह क्या हुआ
कि मृत्यु से निरपेक्षता के हमारे शब्दकोश में एक शब्द आया विकास
और सब कुछ ऐसे टूटा और विकसित हुआ
कि हम काँपने लगे कुछ भी नष्ट होने के नाम पर
हम जल्दी-जल्दी विकास की ज़द में आने से बचाना चाहते थे
अपने लोगों को
पर वहाँ कोई था ही नहीं
कभी-कभी तो यह भी लगता है कि
यह सिर्फ़ हम तीन ही लोग थे
जो इस सपने जैसी परिघटना से डर कर काँप रहे थे
सिर्फ़ तीन बचे थे
जो नहीं जानते थे कि किस-किस तरह से किया जा सकता है विकास
और यह भी नहीं कि परिवर्तन से हाथ जोड़कर कैसे कहा जाता है कि हे परिवर्तन!
अब आप न होइए और आप अब तुरंत हो जाइए!
- रचनाकार : अमन त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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