अंततः हमारा शत्रु भी एक नए युग में प्रवेश करता है
अपने जूतों कपड़ों और मोबाइलों के साथ
वह एक सदी का दरवाज़ा खटखटाता है
और उसके तहख़ाने में चला जाता है
जो इस सदी और सहस्राब्दी की ही तरह अथाह और अज्ञात है
वह जीत कर आया है और जानता है कि उसकी लड़ाइयाँ बची हुई हैं
हमारा शत्रु किसी एक जगह नहीं रहता
लेकिन हम जहाँ भी जाते हैं पता चलता है वह और कहीं रह रहा है
अपनी पहचान को उसने हर जगह अधिक घुला-मिला दिया है
जो लोग ऊँची जगहों में भव्य कुर्सियों पर बैठे हुए दिखते हैं
वे शत्रु नहीं सिर्फ़ उसके कारिंदे हैं
जिन्हें वह भर्ती करता रहता है
ताकि हम उसे खोजने की कोशिश न करें
वह अपने को कंप्यूटरों टेलीविज़नों मोबाइलों
आइपैडों की जटिल आँतों के भीतर फैला देता है
किसी महँगी गाड़ी के भीतर उसकी छाया नज़र आती है
लेकिन वहाँ पहुँचने पर दिखता है वह वहाँ नहीं है
बल्कि किसी दूसरी और ज़्यादा नई गाड़ी में बैठ कर चल दिया है
कभी लगता है वह किसी फ़ैशन परेड में शिरकत कर रहा है
लेकिन वहाँ सिर्फ़ बनियानों और जाँघियों का ढेर दिखाई देता है
हम सोचते हैं शायद वह किसी ग़रीब के घर पर हमला करने चला गया है
लेकिन वह वहाँ से भी जा चुका है
वहाँ एक परिवार अपनी ग़रीबी में से झाँकता हुआ टेलीविजन देख रहा
जिस पर एक रंगीन कार्यक्रम आ रहा है
हमारे शत्रु के पास बहुत से फ़ोन नंबर हैं ढेरों मोबाइल
वह लोगों को सूचना देता है आप जीत गए हैं
एक विशाल प्रतियोगिता में आपका नाम निकल आया है
आप बहुत सारा क़र्ज़ ले सकते हैं बहुत-सा सामान ख़रीद सकते हैं
एक अकल्पनीय उपहार आपका इंतज़ार कर रहा है
लेकिन पलट कर फ़ोन करने पर कुछ नहीं सुनाई देता
हमारा शत्रु कभी हमसे नहीं मिलता सामने नहीं आता
हमें ललकारता नहीं
हालांकि उसके आने-जाने की आहट हमेशा बनी रहती है
कभी-कभी उसका संदेश आता है कि अब कहीं शत्रु नहीं है
हम सब एक दूसरे के मित्र हैं
आपसी मतभेद भुलाकर आइए हम एक ही प्याले से पिएँ
वसुधैव कुटुंबकम् हमारा विश्वास है
धन्यवाद और शुभरात्रि।
- रचनाकार : मंगलेश डबराल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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