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कजरी

kajri

यतींद्र मिश्र

और अधिकयतींद्र मिश्र

    काले रंग में भी इतना संगीत हो सकता है

    यह इससे पहले कौन जानता था

    और यह भी कि ज़्यादातर गाने वाले

    इसमें इतने रंग कहाँ से भर देते हैं

    कौन जानता था कि बरसते पानी

    सनी मिट्टी और गँदले ताल के पास

    प्रेम का इतना वैभव छिपा हो सकता है

    और यह भी कि राधा ने

    अपने संदेश के लिए मेघों से हहराते

    इस मौसम को ही क्यों चुना

    यह सब बातें भी कौन जानता था इससे पहले

    कि इसे गाने से मायके में पड़ी लाड़ली की आँखें छलछला जाती हैं

    और यह भी कि जाने वाला

    लौटने में इतना वक़्त क्यों लगाता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतींद्र मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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