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मुझ में

mujh mein

शहंशाह आलम

शहंशाह आलम

मुझ में

शहंशाह आलम

और अधिकशहंशाह आलम

    मैंने देखा मेरे अंदर एक नदी है

    जो हँसा रही है तट को तल को

    एक दरख़्त है तोतों से भरा हुआ

    मुझ में एक ख़ानाबदोश है

    जो जी रहा है मुद्दतों से घुमंतू

    एक चाँद है जो मेरी ही तरह

    बाँट रहा है रोज़ दुआएँ

    शत्रु की बददुआओं के बदले

    मैंने देखा जो शहर ढह गया था

    सदियों पहले भरभराकर

    वही शहर खड़ा हो रहा है

    मुझ में लम्हा-दर-लम्हा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : थिरक रहा देह का पानी (पृष्ठ 38)
    • रचनाकार : शहंशाह आलम
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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