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तुम देखना चाँद

tum dekhana chand

जावेद आलम ख़ान

जावेद आलम ख़ान

तुम देखना चाँद

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    तुम देखना चाँद

    एक दिन कविताओं से उठा ज्वार

    अपने साथ बहा ले जाएगा दुनिया का तमाम बारूद

    सड़कों पर क़दमताल करते बच्चे

    हथियारों को दफ़न करके

    ज़मीन को उसका सारा लोहा वापस कर देंगे

    और उसकी खाद बनाकर फूल उगाएँगे

    तुम देखना एक दिन शब्दों की दुनिया से

    चुन-चुनकर निकाले जाएँगे अपमानजनक संबोधन

    लोलुप जीभ अपनी लार समेत

    अभ्यस्त हो जाएगी अपनी सीमाओं में रहना

    तुम्हारी चाँदनी बेनक़ाब कर देगी घात लगाए भेड़ियों को

    लड़कियाँ गुड्डे-गुड़ियों के खेल

    और मोबाइल की हद से बाहर निकलकर

    बेख़ौफ़ होकर खेल सकेंगी छुप्पन-छुपाई

    तुम देखना और मुस्कुराना उस बरगद के साथ

    जिसकी छाँव खाप की क़ैद से मुक्त होगी

    जब खिलखिलाहट पर लगे सारे प्रतिबंध

    सरे-राह लड़कियों के पैरों तले रौंदे जाएँगे

    जब ग़ैरबराबरी का हर दक़ियानूसी दस्तावेज़

    चूल्हे का ईंधन बनेगा

    जिसके इर्दगिर्द बैठकर बुज़ुर्ग सर्दियों में हाथ तापेंगे

    तुम देखना चाँद

    एक दिन धरती के यान तुम्हारी तरफ़ बढ़ेंगे

    लेकिन उनमें साम्राज्यवाद का कोई पिट्ठू नहीं होगा

    तानाशाहों का मुँह चिढ़ाते कुछ बच्चे होंगे

    जो तुम्हे गेंद समझकर खेलने रहे होंगे

    उनके साथ होंगी दादियाँ और नानियाँ

    जो तुम्हारी ज़मीन पर पालथी मारकर बैठेंगी

    और इत्मीनान से चरख़े से सूत कातेंगी

    तुम देखना चाँद

    कि बम-वर्षा से घायल हुई पृथ्वी की देह पर

    तुम्हारी चाँदनी का लेप होगा

    और उसकी शीतल छुअन से रोमांचित किसान

    अपनी उँगलियों की कारीगरी से

    धान के नन्हे पौधों से धरती को ढक रहा होगा

    तुम साक्षी रहना चाँद

    कि जिस दिन युग करवट बदलेगा

    मानवता उतार फेंकेगी कुंभकर्णी कवच

    धरती के दोनों ध्रुवों से पिघला हुआ पानी

    प्रेमियों की आँखों में उतर आएगा

    और वे अपनी संपूर्ण तरलता के साथ दौड़ते हुए

    भूमध्य रेखा पर आकर मिल जाएँगे

    तुम उन्हें स्नेह से देखना

    और उनके श्रम-श्लथ चेहरों पर

    अंजुरी भर चाँदनी उलीच देना

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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