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जवाबदेही

javabadehi

प्रणव नार्मदेय

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प्रणव नार्मदेय

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प्रणव नार्मदेय

और अधिकप्रणव नार्मदेय

    कहिया तक करब

    छुच्छ अतीतक गुणगान

    कहिया तक घोखब

    पुरखेक मान बखान

    मिथिला माने

    अगबे जनक-जानकी

    मंडन-भारती

    अयाची-विद्यापति सन

    बड़का-बड़का नामे टा थोड़बेक छै

    मिथिला माने

    बड़का-बड़का शहरक

    कि सात समुंदर पार विदेशक

    अकास छुबैत वातानुकूलित दफ्तरमे बैसल

    मोट कैंचा कमा घर-जजाति अरजैत

    कोनो भरिगर गोत्र-मूलक

    कुलदीपके सभटा सेहो नहि

    मिथिला माने

    हम-अहाँ,ई-ओ

    खेत जोतैत कोनो रामखेलाओन

    दूध दूहैत कोनो किसुन

    बकरी-महींस चरबैत कोनो बिसुन

    कि नोन-तेल-लकड़ीक जोगाड़मे

    दिल्ली-बम्बइ, आसाम-पंजाब जाइत

    कोनो जीबछ, बौका कि बुझाओन सेहो

    मिथिला माने

    आँगन-घर नीपैत कोनो सरोसत्ती

    गोबर-करसी करैत कोनो बुधनी

    चौर-चाँचड़मे घाम चुआबैत कोनो रामेस्सरी

    भनसाघरमे रान्ह करैत कोनो गुलटेनमाक माय

    संगहि हक्कल डाइन-जोगिन होयबाक दंश सहैत

    गाम-टोलसँ बारल कोनो मसोमात

    अल्लाँपुर कि फल्लाँपुर वाली बूढ़ी सेहो

    मिथिला माने

    कोनो गोखुर टँगने

    पंडीजीक मुँहसँ निकसैत

    वेद, स्मृति, गायत्री-सावित्री, जनउ, दूर्वाक्षत मंत्र

    कि कोनो त्रिपुंड ढौरने

    जोतखी बाबाक लाल मोसिसँ खतियाओल

    टिप्पैन-टिपौत कि लाल किताबक

    रेखे टा नहि छैक

    मिथिला माने

    मुरेट्ठा बन्हने

    हर जोतैत कोनो हरबाहक गरसँ निकसैत

    आल्हा, सलहेस,कुमर-बृजभानक टेर

    संगहि घाम बहबैत

    कोनो जन-मजूरक हर-कोदारिसँ पाड़ल

    खेत-चासक सीना पर चमकैत

    आरि-मेढ़ सेहो

    हे मीत

    राखू अखियास

    जे कोनो जाति, समाज हो कि सभ्यता

    ओकर अतीते टा नहि

    वर्त्तमान भविष्य सेहो होइछ

    संगहि अतीत खाली चमकैते

    कि वर्त्तमान भविष्य अन्हारे सेहो कहाँ

    से हम-अहाँ

    एतेक जे ई-ओ सभ वर्त्तमान आजुक

    काल्हुक अतीतो त' होयब

    तखन त' कने पारू ने मोन

    जे की-की रचै-बसबै छी

    हम-अहाँ-ओ आइ

    जाहिसँ कि सिद्ध होमय सभक जवाबदेही

    गौरव-गान करय संतति हमर-अहाँक

    संगी

    त' किएक ने ल' हाथमे हाथ

    मिलाबी कान्हसँ कान्ह

    लगाबी बुद्धि बल

    सभ संग मिलि बनयबा लेल

    नव पहिचान एकटा

    समयसँ डेग मिलबैत समाजक

    मानवताक गुणसँ बोरल सभ्यताक

    गढ़ी एकटा नव न्यायोचित इतिहास

    आबयबला पीढ़ीक लेल

    जँ से नहि त'

    अपनहि कहने काबिल सभसँ

    भरले अछि घरही सगरो मिथिला।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विसर्ग होइत स्वर (पृष्ठ 51)
    • रचनाकार : प्रणव नार्मदेय
    • प्रकाशन : नवारम्भ, पटना
    • संस्करण : 2017

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