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मैं कैसे मान लूँ कि तुम आदिवासी हो?

main kaise maan loon ki tum adivasi ho?

एंजेला एनिमा तिर्की

एंजेला एनिमा तिर्की

मैं कैसे मान लूँ कि तुम आदिवासी हो?

एंजेला एनिमा तिर्की

और अधिकएंजेला एनिमा तिर्की

    उसने कहा—तुम आदिवासी हो?

    लेकिन मैं क्यूँ मान लूँ?

    बताओ कैसे मान लूँ?

    तुम्हारे माथे पे गोदा का निशान नहीं

    हाथों और पावों में

    चमकती बेड़ियों जैसे चूड़ियाँ नहीं

    तुमने कहा—तुम आदिवासी हो

    लेकिन मैं क्यूँ मान लूँ?

    बताओ कैसे मान लूँ?

    तुम्हारा शरीर अर्धनग्न नहीं

    सिर पे कोई खोपा नहीं

    नाक में बड़ी-सी नथनी नहीं

    तुमने कहा—तुम आदिवासी हो

    लेकिन मैं क्यों मान लूँ?

    बताओ कैसे मान लूँ?

    गले में कोई हार नहीं

    बदन पे कोई शृंगार नहीं

    हाथों में कोई औज़ार नहीं

    तुमने कहा—तुम आदिवासी हो

    लेकिन मैं क्यूँ मान लूँ?

    बताओ कैसे मान लूँ?

    तुम कच्चा माँस खाते हो

    जंगली जानवर का शिकार करते हो

    किसी झोंपड़ी में रहते हो

    तुमने कहा—तुम आदिवासी हो

    लेकिन मैं क्यूँ मान लूँ?

    बताओ कैसे मान लूँ?

    तुममें वो भोलापन नहीं

    तुममें वो मासूमियत नहीं

    तुममें सादगी की एक झलक तक नहीं

    तुमने कहा—तुम आदिवासी हो

    लेकिन मैं क्यूँ मान लूँ?

    बताओ कैसे मान लूँ?

    तुम्हारी भाषा समझता हूँ मैं

    अपनी बात कह सकता हूँ मैं

    तुमसे बात कर सकता हूँ मैं

    तुमने कहा—तुम आदिवासी हो

    लेकिन मैं क्यूँ मान लूँ?

    बताओ कैसे मान लूँ?

    मैंने उनसे कहा—हाँ मैं आदिवासी हूँ

    जो इतिहास था वो अमर है

    जो अब मैं करूँगी

    वो भी इतिहास ही बनेगा

    मेरे रंग पे तुम मत जाओ

    मेरे रूप पे तुम मत जाओ

    मेरा संयम-मौन देखो

    प्रकृति प्रेम की धार देखो

    मेरी रगों में दौड़ती

    आदिवासियत का तेज बहाव देखो

    तुम मेरी परवरिश मत आँको

    तुम मेरे जीने का ढंग मत नापो

    माँस अभी भी खाती हूँ

    शीतल झरिया का पानी अभी भी पीती हूँ

    तुम खुली रखो अपनी आँख

    क्योंकि अब नहीं मैं किसी की ग़ुलाम

    स्वछंद विचारों की मैं ख़ुद मालिक

    मानसिकता संकीर्ण नहीं मेरी

    एक आज़ाद पंछी हूँ मैं

    मैं चाहती हूँ तुम समझो मेरी बात

    इसीलिए तुम समझते हो मेरी भाषा

    जल, जंगल, ज़मीन के संघर्ष में

    तीर धनुष की वार से

    ही तलवार की नोंक से

    विद्रोही हूँ मैं अपने विचारों से

    बिल्कुल अपने पूर्वजों भाँति

    नहीं ज़रूरत औजारों की मुझे

    कलम की ताक़त है मेरे पास

    आदिवासियत की लड़ाई में

    हमेशा मिलोगे तुम झुँड में उस पार

    और मैं अकेली इस पार

    क्योंकि स्वतंत्रता तुम्हें मेरी खलती है

    आत्मनिर्भरता मेरी तुम्हें कचोटती है

    इसीलिए आसान नहीं तुम्हारे लिए

    ये सच स्वीकार करना

    कि हाँ मैं एक आदिवासी हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : एंजेला एनिमा तिर्की
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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