मैंने सबसे पहले घरों को देखा
अँधेरे और वहशीपन में डूबते
कायर लोग हमारे रक्त में शामिल रहते
और घात लगाकर हमले करते रहते
मैंने धीरे से एक पाँव बाहर निकाला
नदी की घाटी पर बैठकर रोने लगा
मैंने सोचा कभी नहीं जाऊँगा
मुझे सड़कों ने मनाया
नदियों ने रोने दिया
हवाएँ मुझे चूमती रहीं
वहशीपन के शिकार सबसे सुंदर लोग
मुझे बुलाते रहे
मैं उनके बीच शहर हुआ
खेत हुआ
वे जो कहते मैं होता जाता और ख़ुद को देखकर तालियाँ बजाता
प्रेम गीत गाता, हरी फ़सलों पर तैरते हुए
शहर-शहर गली-गली घूम आया करता
हँसते हुए चेहरों के पीछे
ऐसी उदास दुनिया फैली हुई थी
जो अपनी ही साँस से अफनाई हुई थी
उसकी साँस रोक भी दो तो उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था
मेरे हाथ ठंडे पड़ गए
आँखें जम गईं
मैंने उनके लिए तालियाँ बजाईं
उनके लिए ख़ूब रोया,
और उनके पाँवों को
सड़कों और नदियों तक लेकर गया
मेरा इसके सिवा कोई घर नहीं था
इसके सिवा कोई भावना नहीं थी
यह रात बहुत भारी है
जैसे मेरी आँखों की बजाय
मेरे सीने में उतर रही है
ये सड़कें जैसे आज
मेरे कंधे पर चल रही हैं
मैंने अपने पास कुछ भी नहीं रखा
सिवाए प्रेम-पत्रों के
मैंने अपना कोई घर नहीं रखा
अपना कोई वजूद नहीं रखा
वे सभी मेरे अपने थे जो मेरी तरह
चेहरों के पीछे उतरकर धक्का देते थे
मैं उन्हें प्यार तो कर ही सकता था
उनसे प्यार तो माँग ही सकता था
मैंने सोचा ही नहीं था
मेरे अपने प्यारे लोग
और उनका प्यारा मैं
मुझसे हिसाब माँगते समय इतना क्रूर हो जाएँगे
और वे मुझसे पूछेंगे
औरों की छोड़ो ये बताओ मेरे लिए क्या किया
मेरी आत्मा काँपने लगती है
मैं अपनी ही साँसों में अफनाने लगता हूँ
और जब एक बार पलटकर
जीवन को देखने की कोशिश करता हूँ
मैं मनोरोगी हो जाता हूँ।
- रचनाकार : रवि प्रकाश
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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