भड़ाक् से खुले नगर-द्वार
घुसी अंदर हवा—
मुहासरे से अभी-अभी मुक्त हुए किसी आदमी की तरह
किसी विजेता की छूँछी आत्मा की तरह;
अंत में जिसकी कोई अपेक्षा नहीं रह जाती।
हवा का एक निरर्थक झोंका—
अपने नुक्कड़ों से ऊबी सड़कों के साथ मटरगश्ती करता।
रोटी की पपड़ियों और जीवन की तलाश में
भटकती किसी भिखमंगे की उसाँस।
कराहे कंकर-पत्थर
और थरथराए प्रासाद,
हवा के साथ आए वे लोग
जिन्होंने अपने हलों को ज़ंग खाने को छोड़ दिया था;
आकाश जुताई करते एकाकी लोग
गरमी की रातों की फ़सलें काटते,
सुबह के तारों का उर्वर अनाज,
और उस सबको अन-ओसाया छोड़ते।
इसके बजाए उन्होंने तलवारों का इस्तेमाल किया,
जिस्मों की जुताई की
दिल तक चीरती गई उनकी कूड़े
और ठूँठों की तरह खींच निकाले दिल,
फोड़ दिए पित्ताशय,
जिगर परोसे अपने कंधों पर विराजमान
गिद्धों के आगे
और आख़िरश् खोपड़ियाँ लुढ़का दीं
भवन-निर्माण के काम आने वाले पत्थरों के माफ़िक—
हालाँकि भवन-निर्माण के लिए उनके पास
वक़्त नहीं था
माँओं से छीन लिए गए उनके बच्चे
सूख गए आँखों में आँसू
और आँचल में दूध,
टूटे पाइपों से सड़कें जलमग्न हो उठीं
फटी धमनियों की तरह स्पंदित,
बलियाँ तीव्र गति से दी गई थीं
लेकिन देवालयों को सुअरबाड़ों में तब्दील करने
तथा सामान्य दुर्गंध को और उभाड़ने के सिवा
और कोई उम्मीद नहीं थी,
हवा ने सुलझाया झंडों और
घंटी की रस्सियों को
और, अपने घुमेरदार पुछल्ले के साथ,
एक झाड़ू के माफ़िक, नगर को पार करते हुए
सूर्य के घंटे से जा टकराई।
('ट्रॉय' से एक अंश)
- पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 439)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : बोगोमिल ग्युजेल
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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