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सीटीदार कमरों में

sitidar kamron mein

अनुवाद : निशांत कौशिक

शुकरु एरबाश

अन्य

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शुकरु एरबाश

सीटीदार कमरों में

शुकरु एरबाश

और अधिकशुकरु एरबाश

    ताकि तन्हा रह जाओ तुम

    तुम्हारी क़ब्र से भी भागता हूँ

    वापिस घर की ओर

    सीटीदार कमरों में

    मैं बात करता हूँ,

    बात करता हूँ,

    बात करता हूँ

    मैं दूर से आया,

    होंठों पर सुबह की ओस लिए

    बचपना मत करो,

    कहकर भींचती हो अपने होंठ

    फिर मैं अपनी आँखें ऊपर उठाता हूँ,

    खिड़की नहीं है वहाँ

    बच्चों की मौतों की तरह

    पलकों पर बरौनियों की क़तार है

    इंसान दुःख से शर्मिंदा हो जाता है क्या?

    बह चुके आँसुओं से हुई मेरी ज़हर-ख़ुरानी

    बहुत देर हो चुकी है,

    कहा था तुमने एक दफ़ा

    मौत के गर्भ में

    ये बच्चे कैसे जिएँगे इस मुल्क में

    अंताक्या के नज़दीक एक गाँव में

    प्यार में डूबे हुए हमारे दिल

    इतनी नेमतों से घिरे हुए

    कौन सोचता है इस वक़्त मृत्यु के बारे में?

    चलो चलें साहिल की तरफ़

    नील, डर को हमारे कुछ सुला देगा

    दो लोगों की तन्हाई हूँ मैं,

    इस तस्वीर के सामने

    एक जिसको तुम लेकर जा चुकी हो,

    एक जिसे छोड़ गई हो यहाँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : शुकरु एरबाश

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