'प्यारे, नार्थ टैरैस पर बैठा मैं, तुम्हारी पुरानी कविताएँ पढ़ रहा हूँ
और चिमनी फकफका रही है।
एक रचनाकार और किरानी का साथ कितना उदास कर जाता है!
मैं पढ़ धान के उन्मुक्त-लहराते खेतों के बारे में रहा हूँ
और आँखें ऊपर उठाता हूँ तो सिर्फ़
ऑफ़िस के लेजर, राज्य सरकार के ख़र्च-खाते
और हुकूमत के पीले पड़ चुके हिसाब-किताब नज़र आते हैं।'
पिछली गर्मियों की उस रात, सोमरार्द स्ट्रीट के मेरे होटल वह पहुँचा
तो उसका इंतज़ार करते मुझे दो साल होने को आ रहे थे।
अब उस बातचीत का बमुश्किल ही कुछ याद रह गया है—
उन दिनों एक अरब लड़की से उसका प्रेम चल रहा था
लेकिन उसकी बजाए फॉक्स डेयन की जंग से वह कहीं ज़्यादा
आहत था।
'सार्त्र बूढ़े हो गए हैं, उनमें अब उचित-अनुचित का विवेक नहीं रहा।'
उसने मुझे बताया और यह भी कहा
कि इटली जाकर उसे ख़ुशी हुई—
वहाँ के ख़ाली-ख़ाली समुद्र तट, जल साही और हरे पानी में
चर्बी से झलमलाते असंख्य जिस्म, 'बरांको के नहानकुंडों जैसे'
(उसका इशारा सदी के शुरू में बने एक समर हाउस की तरफ़ था)
और केकड़ों के व्यंजन!
वह धूम्रपान करना छोड़ चुका था और
साहित्य से उसका अब कोई रिश्ता नहीं रह गया था।
चिमनी चार बार फकफका चुकी थी
और चुप्पी किसी अड़ियल बैल की ज़िद बन गई थी।
लिहाज़ा कुछ-न-कुछ बचा लेने के इरादे से
मैंने अपने कमरे और लंदन के पड़ोसियों का ज़िक्र छेड़ा :
उस स्कॉट महिला का, जिसने दोनों जंगों में जासूसी की थी,
वहाँ के दरबान का और एक पॉप गायक का,
और जब बताने को कुछ भी बाक़ी नहीं बचा
तो अँग्रेज़ी को लानत भेजते हुए मैंने चुप्पी साध ली।
चिमनी फिर फकफकाई
और तब उसके शब्दों ने किसी गुबरीले की पीठ से भी ज़्यादा
चमक बिखेरी—
उसने ग्रेट मार्च के बारे में बताया
नील नदी और उसके उफ़नते जलाशय के बारे में
पीत नदी और उसकी ठंडी धाराओं के बारे में,
और हमने, बिना किसी संगीत या शराब के सहारे के,
अक़्लमंदी के लिए सिर्फ़ अपनी आँखों पर भरोसा रखते हुए,
समुद्र के किनारे-किनारे भागने और कूदने के ज़रिए
अपने-आप को सुदृढ़ बनाने की कल्पना की,
और इनमें से कोई भी चीज रेगिस्तान में किसी नख़लिस्तान
जैसी नहीं प्रतीत हुई।
लेकिन मेरे देवता कमज़ोर हैं और मुझे शक हुआ।
और वे नौ-उम्र साँड़ दीवारों के पीछे गुम हो गए थे
और उस रात वह सोमरार्द स्ट्रीट के होटल वापस नहीं लौटा।
ज़िद्दी और घामड़ देवता हर सुबह मेरा कलेजा कुतरने के अभ्यस्त
हो गए।
उनके चेहरे अस्पष्ट थे— देवोचित विशिष्टताओं से शून्य।
'प्यारे, मैं उस द्वीप पर स्थित हूँ, जो चैनल के उत्तरी छोर के नीचे धँसता
जा रहा है
और तुम्हारी कविताएँ पढ़ रहा हूँ,
धान के खेत मरे हुए लोगों से पटे पड़े हैं
और चिमनी फकफका रही है।'
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 456)
- रचनाकार : अंतोनियो सिस्नेरोस
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.