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त्यौहारों में हार जाने वाले बच्चों के ख़त

tyauharon mein haar jane wale bachchon ke khat

शाश्वत

शाश्वत

त्यौहारों में हार जाने वाले बच्चों के ख़त

शाश्वत

और अधिकशाश्वत

    त्यौहार में हार जाने वाले बच्चों की तरफ़ से

    यह ख़त तुम्हारे नाम है मेरे गाँव, मेरे घर... बड़का घर।

    मैं इस त्यौहार

    शहर के किसी किनारे पर बैठकर

    तुम्हारे सपने देख रहा

    मैं बार-बार तुमको याद कर रहा

    मुझे तुमसे मिलना है मेरे घर।

    अभी के अभी मिलना है।

    मेरे गाँव,

    तुम तो शहर भी नहीं सकते

    शहर ही रहा अब तो तुम्हारे पास।

    सुबह दस बजे की आख़िरी जीप के पेंग में

    लोहे की खट्टी गंध के साथ

    जब से शहर आया हूँ,

    रोज़ सपने में कभी रेलगाड़ी जाती है,

    तो कभी सड़क के मोड़ वाला जनरल स्टोर,

    जहाँ के पटाख़े हाथ में जला लेता था।

    यहाँ शहर में एक नदी है

    लेकिन मछलियाँ नही हैं मेरे गाँव।

    यहाँ शहर में बैठने की जगह है

    लेकिन पैर पसारने का सुकून नहीं है।

    यहाँ शहर में कभी भी कहीं भी जा सकते हैं

    लेकिन यह शहर कलमुहाँ,

    तुम जैसे हाथ पकड़ कर नहीं ले जाता बाज़ार में।

    मुझे यहाँ तुम्हारी याद आती है मेरे घर

    त्यौहारों में तो रो देने का मन करता है।

    सब याद आने लगता है,

    कैसे हर बार डाँट पर

    तुमने मुझे रोने के लिए सीढ़ियाँ खोल दीं।

    मुझे छुपने के लिए दीवारों में अलमारी गढ़ दी।

    और तो और मेरी नवीं क्लास के प्यार में,

    मेरे ग्रीटिंग्स तक तुमने ऐसे छुपा लिए अपनी छत की गोद में,

    जैसे तुम्हारा अपना अनचाहा गर्भ हो।

    मुझे इसलिए बस इसलिए तुम्हारे पास आना है

    मेरे घर, मेरे गाँव,

    कि मैं जो तुम्हारे छत से उन उड़ती जहाज़ों के

    जलती-बुझती बत्तियाँ गिन लेता था,

    उन जहाज़ो का ठिकाना जान गया हूँ

    वो ठीक इसी शहर में आकर उतरती हैं।

    मेरे घर,

    बस यह त्यौहार तुम मुझ बिन मना लो,

    अगले त्यौहार

    जहाज़ से आऊँगा।

    ठीक तुम्हारे बगल से जहाज़ लाकर धप्पा बोल जाऊँगा

    तुम डर जाओगे और मैं वैसे ही हँस दूँगा,

    जैसे बिन बात हँसते-हँसते तुम्हारी फ़र्श पर गिरकर

    मेरे दाँत टूट गए थे।

    मेरे घर,

    आज मालूम क्यों तुम्हारी बहुत याद रही

    त्योहार में हार जाने वाले बच्चों की तरफ़ से

    यह ख़त तुम्हारे नाम है मेरे गाँव मेरे घर... बड़का घर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शाश्वत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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