सरकारी हिंदी
डिल्लू बापू पंडित थे
बिना वैसी पढ़ाई के
जीवन में एक ही श्लोक
उन्होंने जाना
वह भी आधा
उसका भी वे
अशुद्ध उच्चारण करते थे
यानी ‘त्वमेव माता चपिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश चसखा त्वमेव’
इसके बाद वे कहते
कि आगे तो आप जानते ही हैं
गोया जो सब जानते हों
उसे जानने और जनाने में
कौन-सी अक़्लमंदी है?
इसलिए इसी अल्प-पाठ के सहारे
उन्होंने सारे अनुष्ठान कराए
एक दिन किसी ने उनसे कहा :
बापू, संस्कृत में भूख को
क्षुधा कहते हैं
डिल्लू बापू पंडित थे
तो वैद्य भी उन्हें होना ही था
नाड़ी देखने के लिए वह
रोगी की पूरी कलाई को
अपने हाथ में कसकर थामते
आँखें बंद कर
मुँह ऊपर को उठाए रहते
फिर थोड़ा रुककर
रोग के लक्षण जानने के सिलसिले में
जो पहला प्रश्न वे करते
वह भाषा में
संस्कृत के प्रयोग का
एक विरल उदाहरण है
यानी ‘पुत्तू! क्षुधा की भूख
लगती है क्या?’
बाद में यही
सरकारी हिंदी हो गई
- रचनाकार : पंकज चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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