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अपनी हिंदी के लिए

apni hindi ke liye

पंकज सिंह

पंकज सिंह

अपनी हिंदी के लिए

पंकज सिंह

और अधिकपंकज सिंह

    जिनके पास ख़ूब साधन हैं ख़ूब सुनहरे दिन-रात

    मौज-मज़े के एकांत और उचित ऊब

    जिलाने और मारने की क्षमताएँ तरह-तरह की

    उनमें से कई जब-तब कविता वग़ैरह में दिलचस्पी दिखाते हैं

    हिंदी में हो तो भी

    हारे हुओं की छाप लिए अक्सर सिर झुकाए

    लुटी-पिटी गत-हत-यौवना

    बलत्कृता

    झलफाँस साड़ी में बदरंग

    चाहे जितनी भी अनुपयोगी हो हिंदी

    जय-जयकार तो यहीं करानी होती है आख़िरकार

    राजधर्म का निबाह करते-करते

    जब कविता की ओर उन्मुख होते हैं शासक

    कवि चुनते हैं अपनी निरापद कविताएँ

    क़िसिम-क़िसिम के धुँधलके में

    पराधीन होते जीवन का

    विराट वैभव दिखाने वाली

    छायाएँ ढूँढ़ती शरणस्थलियाँ तलाशती

    भीगे-भीगे प्रेम की, उदास घाटों की

    परे खिसकाते हुए

    नैतिकता के सवाल, बदलाव के स्वप्न

    आवेग की अग्निसंचारी शिराएँ

    भाषा और पीड़ा के बीच कलात्मक परदे लटकाते

    इंकार की जगह चापलूस मुस्कानें बिछाते हुए

    ऐसे ही बहुतों की बहुत-सी कविताएँ वग़ैरह

    उनकी अनोखी हिंदियाँ देखते-देखते

    मैं बोल पड़ा ग़ुस्सा दिलाते उदास करते

    बेतुके समय के बारे में अपनी बोली में

    तो बाहर किया गया

    रोचक हैं उसके बाद के अनेक विवरण

    जो दिलचस्प बनाते हैं कवि को

    मगर कविता को नहीं

    धूसर लोकतंत्र में

    मेरे बाद उनमें से कोई हिंदी-प्रेमी

    फूल और संदेश भिजवाए कहीं मरघट में

    इसका यत्न करना चाहिए मुझे अपनी हिंदी के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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