कुछ बेफ़िक्रे लोग ज़रूर करते हैं मेरा भरोसा
लेकिन बन-ठनकर जीने वाले तो तभी होते हैं पूरे
जब सूट के साथ सजे हों बूट भी
मेरा कोई भी ढंग नहीं करता किसी को भी पूरा
एक लापरवाह अधूरापन
चिपका ही रहता है मेरे साथ
इसलिए कई बड़ी चमकती इमारतों और संस्थानों में
प्रतिबंधित हूँ मैं
लेकिन बहुत पुरानी साथिन भी हूँ आदमी की—शायद
उसके आराम की आदिम खोज
औरत, आग और हथियार के बाद तो
मेरा ही नंबर आएगा
चाहे तो कर सकते हैं
आपके बड़े-बड़े इतिहासकार
यह छोटी-सी खोज
पता नहीं क्यों
लेकिन मुझे लगता है कि मुझे बनाया होगा
किसी औरत ने सबसे पहले
अपने खुरदुरे और आदिम अंदाज़ में
हो सकता है
मैं रही होऊँ प्रथम अनजाने प्रेम की आकस्मिक भेंट
किन्हीं खुरदुरे कृतज्ञ पैरों के लिए आराम की पहली इच्छा
मेरे भीतर तो अब भी चरमराता है
आदमी का पहला सफ़र
जब पहली बार मैंने उसके तलवों और धरती के बीच
एक अनोखा रिश्ता बनाया होगा
वह आदमी और पृथ्वी के बीच पहला अंतराल भी था
हालाँकि घास और धूल के बहाने अब भी उसकी त्वचा
जब-तब गपियाती रहती है पृथ्वी से
कभी-कभी आपका पिछड़ापन बचा लेता है आपको
कई झंझटों से
मसलन मुझे पहनकर नहीं जीते जाते युद्ध
वहाँ तो बड़े-बड़े और मज़बूत जूतों का राज है
और इतनी अपवित्र मैं
कि कोई नहीं ले जाता मंदिर या किसी पवित्र जगह
हाँ! इस देश की एक पुरानी कहानी में
एक भाई ने ज़रूर बनाया था मुझे राजा
और दे दी थी राजगद्दी
चलो पर वो तो कहानी थी बस!
मेरी जीभ में आदमी का आदिम स्वाद है
थके-हारे आदमी की शाम
शामिल हो जाती है कभी-कभी
मेरी सिकुड़ी हुई साँस में
- रचनाकार : राजेंद्र कैड़ा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.