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कुछ और सपने

kuch aur sapne

आंशी अग्निहोत्री

आंशी अग्निहोत्री

कुछ और सपने

आंशी अग्निहोत्री

और अधिकआंशी अग्निहोत्री

    कुछ जंगली सपने

    जो गरजती-उफनती लहरों के साथ उठते हैं

    मेरे दिल के कोने भिगाते हुए

    तूफ़ान लाते हुए

    और एक तेज़ हवा का झोंका

    उन्हें लाकर पटक देता है

    मेरी आँखों की पुतलियों के भीतर

    कुछ और सपने

    मेरी चमड़ी को छीलते हुए

    मेरी रूह गुलज़ार करने आते हैं

    मेरी रूह खींच लेती है

    उनके हिस्से की साँसें

    वे मर जाते हैं

    वे मेरे ख़ून से सँवरने आते हैं

    या कहूँ मरने आते हैं

    दूर जंगली चमेली की कोख फूटी होगी

    मेरे हिस्से की कुछ कलियाँ

    जो अब फूल बनने को आई हैं

    चाँदी की तस्तरी में ख़ुशबू समेटे हुए

    रूमाल लपेटे हुए

    बड़ी दूर से मेरा मुँह मीठा करने आई हैं

    वे मेरे ख़्वाब हैं

    शहर के उजालों से मावरा हैं

    जिन्हें नूर और ग़ुरूर की

    सरगर्मियों से मतलब नहीं

    जिन्हें सुफ़ेद दुपट्टों की क़द्र है

    उन्हें दाग़दार करने का मक़सद नहीं

    वह मुसाफ़िर मेरे राज़ जानता था

    वह ख़्वाबों की वकालत पर उतर आया था

    जिन्हें मैं जंगल से गुज़रते हुए

    किसी परिंदे के परों में टाँक आई हूँ

    उन ख़्वाबों का ज़िक्र बेमानी है

    मैं अब‌ उन जंगलों का रास्ता नाप आई हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आंशी अग्निहोत्री
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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