शलभ श्रीराम सिंह के वास्ते
हम वाहन पर सवार थे
चालक से कह दिया गया था कि
हमारा कोई गंतव्य तय नहीं
और उसे नहीं होना चाहिए कोई उज़्र
कि वाहन लगातार दौड़ा ही जा रहा
चालक भी हुआ उत्साहित कि
हुए मयस्सर अरसे बाद ऐसे बेवक़ूफ़
हम लगातार गति में रहे
कि ख़ास घर को देख मेरा सहयात्री
वाहन रुकवाता
उसे लगता कि वह भटक गया और
दुबारा बढ़ते हम गली-कूचों की जानिब
चालक जब थककर होता निढाल
हम उतरते अदब से पैसे चुकाते
उतने ही अदब से पेश करते उसे एक सिगरेट
पूछते उसका नाम पता और वल्दियत
वह करता देर तक हमारा शुक्रिया अदा
दोस्त को अपने गंतव्य का पता था
लेकिन जहाँ जाना था वहाँ
जाना ही नहीं चाहता था वह
लेकिन जाने के नाम पर भटकता ही रहा डेढ़ घंटे तक
शायद यही ठहरी
दोस्त की कविता की सिफ़त
- रचनाकार : नरेंद्र जैन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अच्युतानंद मिश्र द्वारा चयनित
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