आज ज़ंग लगी क़लम में
स्याही आई है
कविता को छोड़कर
अकविता करने का
बाह्य आनंद अनुभव हुआ,
मन की ऊपरी वेदना
छलकने लगी।
लांछन है मुझ पर
दाग़ है मेरे श्वेत वसनों पर
जनकवि होने का।
आज मन करता है
कि 'अ' से लेकर
''ज्ञ' तक पूरी वर्णमाला लिख डालूँ
और तुम अपनी मर्ज़ी के अक्षर जोड़कर
कविता कर लो
या घड़ लो।
पर वह लिखना
अब मेरे बस से बाहर है,
जिसे आप सभी समझते रहे।
मैं जनप्रतिनिधि हूँ चाहे
पर विचार अपने शब्दों में
व्यक्त करूँगा वही
जो होंगे मेरी अपनी
समझ से भी बाहर
अब ठंडी फुहारें
हरी-भरी पर्वतमालाएँ
पहाड़ों की गायिकाओं का
मैं कभी चित्रण नहीं करूँगा,
क्योंकि आप उन
सभी
शब्दों के अर्थ जानते हैं।
और मैं वह कविता लिखूँगा
जिसे समझने के लिए
मुझे स्वयं भी करना पड़ेगा
द्रविड़ प्राणायाम
अज्ञान के इस सागर में से
ढूँढ़ निकालूँगा ज्ञान के मोती
ताकि नाम लिखा सकूँ
महान् कवियों की
सूची में।
जब कभी भी अपनी कही बात
समझने में रहता हूँ असमर्थ
तब समझ में आता है
मैं लिख बैठा हूँ
एक ऊँची कविता
एक आदर्श कविता।
- पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 131)
- संपादक : ओम गोस्वामी
- रचनाकार : प्रकाश प्रेमी
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2006
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