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कविता का जीवन

kawita ka jiwan

असद ज़ैदी

असद ज़ैदी

कविता का जीवन

असद ज़ैदी

और अधिकअसद ज़ैदी

     

    एक

    मुझे एक घर में बुलाया गया और मुझे याद आया दूसरा घर
    औरत दूसरी थीमर्द कोई और था बच्चे नहीं थे
    इस सबसे कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता था
    आप बहुत अच्छे लोग हैं मैंने कहा खाना खाकर
    शराब पीकर
    सर उठाकर देखा पता नहीं कब से घूम रहा था पंखा
    घड़ी की विपरीत दिशा में 

    इन्हें अब लिटा देना चाहिए इन्हें बहुत नशा आ गया
    लगता है बत्ती बुझा देनी चाहिए मुझे औरत
    की आवाज़ सुनाई दी मर्द ने इसमें मदद की
    और सिरहाने एक तकिया लगा देना चाहिए
    तकिया

    शुक्रिया मैंने कहा मैं गोया एक मज़ार हूँ
    और आप लोग पीर
    हः हः हः करते दोनों हँसते मुझे देखते रहे
    और कहते रहे शुभरात्रि असंख्य बार
    अँधेरा हो गया मुझे थोड़ी-सी शर्म आई
    और मैं सो गया एक अजीब-से संघर्ष के बाद
    मैं शायद प्रकट होना चाहता था किसी और
    जगह पर किसी और घर में
    कुछ और करते हुए
    अपने को घूमते देखना चाहता था
    पीं पीं करते हुए सड़कों पर 
    शायद मैं प्यार और यातना के किसी मंज़र से
    गुज़रना चाहता था
    अपने पुराने कमरे में निश्चल पड़े रात भर

    ये अभी यहाँ कुछ दिन और हैं
    औरत कह रही थी मर्द से इन्हें फिर
    एक बार यहाँ बुलाओ इनकी बाक़ी कविताएँ और
    कुछ कविताएँ फिर से मैं सुनना चाहती हूँ
    ऐसा करना मर्द बोला सुबह नाश्ते पर
    तुम्हीं पूछकर देखना 
    नहीं बाबा तुम्हीं कहना औरत ने कहा मैं इनके लिए
    पड़ोस से मछली पकवा लाऊँगी।

    दो

    सुबह के विषाद में मैंने आँखें खोलीं
    और थाम लिया एक अजनबी तौलिया
    पराई-सी साबुनदानी जिसे देखकर मेरे अंदर
    कोई चीज़ बेक़ाबू हुई जाती थी

    उनका ग़ुसलख़ाना
    अकेला और डरावना था

    क्योंकि और ग़ुसलख़ानों की तरह
    यहाँ भी बंद थी घर की सारी दुविधा
    वहाँ मौजूद था वहाँ का शक्तिशाली भूत
    वस्तुएँ जीवन और मृत्यु से तटस्थ 
    वहाँ असंख्य दुखों से वास्ता पड़ सकता था
    नहाना कुचले जाने की तरह हो सकता था
    मैंने घबराकर खोला उस ग़रीब करुण नल को
    और उस बेचारे ने दृश्य को बदल दिया

    नाश्ते पर मैंने पाया तस्वीर कल शाम से भिन्न थी
    वे लोग अपने आप थे वस्तुओं से उनका सरोकार
    बोलता था अपनी बात को स्पष्टता से समझा सकते थे
    दो औसत से लोग : मानुष मानुषी : उनका
    अपना जीवन था अपनी जर्जरता 
    कला के शौक़ ने उन्हें अभी बोदा 
    और पिलपिला नहीं बनाया था

    मैं नहीं जानता था उनकी
    क्यों कविता में ऐसी रुचि थी
    उनकी स्थिति को गले उतारने में ही
    मुझे कुछ देर लगी

    नाश्ते पर ख़ैर मैंने उन्हें ख़ूब हँसाया
    मुझे पता था मैं उन्हें हँसाकर
    किसी दबाव से निकलना चाहता हूँ किसी
    चीज़ को नकार रहा हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सरे−शाम (पृष्ठ 103)
    • रचनाकार : असद ज़ैदी
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 2014

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