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काली लड़की

kali laDki

अजंता देव

अजंता देव

काली लड़की

अजंता देव

और अधिकअजंता देव

     

    एक

    काली आँखें
    काले बाल
    काला तिल
    जब सौंदर्य-शास्त्र ने इतनी काली चीज़ें गिना रखी हैं
    त्वचा का कालापन क्यों नहीं
    क्यों अपना काला दिल बचाकर
    किसी का चेहरा स्याह किया जाता है
    क्यों सिर्फ़ अँधेरे में सहलाई जाती है काली देह
    सवेरे हिक़ारत से देखे जाते है अपने ही नाख़ूनों के निशान
    काले और लाल के लोकप्रिय रंगमेल में।

    दो

    यह मेरे लहू का लोहा था
    जो रिस कर आ गया था मेरी त्वचा पर
    चमकता था पसीना नाक पर
    काले रंग की पॉलिश की तरह
    मैं हर रंग की पृष्ठभूमि पर उभर आऊँगी
    मत लगाओ मेरे गाल पर ब्रोंजर
    थोड़ी देर धूप में रह कर
    लोहे को ताँबा बना दूँगी
    कीमियागरी से।

    तीन

    लोहे को लोहा ही काटेगा
    सुवर्ण नहीं
    चाँदी तो बिल्कुल नहीं
    लोहे को अगर कोई नष्ट करेगा तो वह पानी है
    यह पानी काली आँखों में आए आँसू भी हो सकते हैं।

    चार

    मैं इसी जंगल में हो सकती थी
    इसी मौसम में
    गर्म और नम मिट्टी से
    ये मेरी आँच है जिसने तपा दिया है मेरी त्वचा को
    मेरा तापमान बढ़ते ही पिघलने लगते हैं ग्लेशियर
    पर्वतों की चोटियाँ फिर से भूरी होने लगती हैं।

    पाँच

    आख़िर किसके डर ने काले को बनाया डरावना
    और फिर घिनौना
    क्या वह कोई बच्चा था अँधेरे में काँपता
    या कमज़ोर शिकारी बलवान के आगे
    क्या रति स्पर्द्धा में कोई टिक नहीं पाया था मज़बूत और गहरे रंग की पेशियों के सामने
    क्यों किसी को शक्ति और काला एक-सा लगा था

    ये धीरे-धीरे नहीं
    अचानक डर था
    जो तुरंत बदल गया था बचाव के संदेश में

    दिमाग़ अब भी वही संदेश भेजे जा रहा है झटका खाई मशीन की तरह।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अजंता देव
    • प्रकाशन : सबद वेब पत्रिका

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