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कल के आदमी के जूते

kal ke adami ke jute

वीरू सोनकर

वीरू सोनकर

कल के आदमी के जूते

वीरू सोनकर

और अधिकवीरू सोनकर

    भविष्य को आदर्शों के चश्मे से झाँकते हुए ही नहीं देखा जा सकता

    उस तक जाती है कटे नरमुंडों की सीढ़ियाँ भी

    देखा जा सकता है उसे

    कंकड़ पड़ी आँख को मलते हुए भी

    भविष्य देखना,

    बहुत बार अपने मटमैले तल से ऊपर उठ कर

    एक आकाशी सफ़ेद बादलों की ज़मीन ढूँढ़ना नहीं होता है

    बहुत बार अपने भीतर गहरे धँस कर

    एक सोती हुई धमक को जगाना भी होता है

    भविष्य तक जाना

    कई तरीक़े हैं भविष्य तक जाने के

    एक औरत को जितनी तरह से उतारा जा सकता है बाज़ार में

    उतनी ही तरह से जाया जा सकता है एक बहुत बुरे भविष्य में

    अलग-अलग वजहों से रोते हुए बच्चे भी बता जाते हैं

    कि एक अच्छे भविष्य तक जाना कितना आसान है

    तानाशाह जब बताने लगें कि मूर्खता की किस डाल पर बैठता है भविष्य

    तो वह भी एक रास्ता होता है

    चले जाने और जाने का

    एक खिला हुआ फूल, एक टूटा हुआ फूल

    और डाल पर ही अनदेखा रह गया एक मुरझाया हुआ फूल,

    अपने-अपने तरीक़े से भविष्य तक की गई एक यात्रा ही तो है

    हत्याओं के जश्न में मर चुके लोगो का भविष्य

    बचे हुए मौन लोगों के चेहरे पर एक सफ़ेदी-सा पुता रहता है

    एक मृत तस्वीर भी आहिस्ता से छोड़ती है कुछ भविष्यलक्षी रंग

    सभ्यता के नंगे पैर में लगा ज़ख़्म भी है

    एक तरह का सुलगता हुआ भविष्य ही

    चीख़ रहे लोग प्रार्थनाओं से दूर हैं

    बहुत बार ये ही होते हैं भविष्य के बहुत पास

    उपासक समझता है कि अगला ही क्षण है उसका भविष्य

    और बिता देता है आस्था के एक मृत पौधे को सींचते हुए

    अपने वर्तमान की निरर्थक उम्र!

    इतिहास को एक दरवाज़ा समझ कर पीटते हैं बहुत सारे

    तो कुछ व्याख्यानों में बता देते हैं

    कि वह जितनी बार गए इतिहास के भीतर

    वहाँ एक भविष्य मिला।

    हजार तरीक़े हैं जाने के, और हज़ारों तरह के हैं भविष्य!

    बिल्ली की तरह दबे पाँव घात में बैठना

    एक पवित्र प्रार्थना की तरह भी हो सकता है

    जिसमे शामिल होता है दबोचे जाने वाले का भविष्य,

    और शिकारी का भी भविष्य!

    लार टपकाती जीभ से एक अराजक कैसे निपटता है

    एक तरीक़ा यह भी है!

    सत्ता के दिए गए मरहम को बहुत ध्यान से देखना

    देश की देह पर लगे ज़ख़्म के भविष्य को भी देखना है

    दरअसल भविष्य तक जाने का एक ही रास्ता है

    जो पहले देखने से गुज़रता है

    फिर दो रास्तों में बँट जाता है

    पहला, देख कर रह जाना

    दूसरा, देखना और भिड़ जाना

    इन दोनों कामों के हज़ार तरीक़े हैं

    पर वर्तमान को एक ही तरीक़ा पता है

    वह चुपचाप देखता है

    और बना लेता है कल के आदमी की नाप के जूते!

    स्रोत :
    • रचनाकार : वीरू सोनकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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