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कहता हूँ

kahta hoon

रवि प्रकाश

रवि प्रकाश

कहता हूँ

रवि प्रकाश

और अधिकरवि प्रकाश

    रास्ते मेरी आँखों में खोए हुए हैं

    जिसे मैं पाँवों से ढूँढ़ता फिरता हूँ

    मैं उसके साथ चलना चाहता हूँ

    फिर वह बीच रास्ते में अदृश्य होकर,

    कहाँ चला गया

    मैं नहीं जानता,

    मुझे सिर्फ़ उसकी लाश मिलती है

    जिसे मुर्दे ढो रहे हैं

    मुझे उबकाई आने लगती है...!!

    ख़ाली पर्स

    जेब में नर्स

    और लावारिश लाशों का इलाज

    बिस्तर और फ़र्श

    तुम कहीं भी दम तोड़ सकते हो

    लेकिन वह ठंड से मर रहा है

    और क़मीज़ पहाड़ों पर सुखा रहा है

    मैं उसकी क़मीज़ ढूँढ़ रहा हूँ

    रास्ते में मेरी आँखें खो गई हैं

    मैं उसकी आँखें खोजता हूँ

    और लावारिश लाशों की आँखों से दुनिया देखता हूँ

    उसकी क़मीज़ मेरी आत्मा पर सूख रही है

    उसका शरीर बर्फ़ की तरह जमकर

    ठोस, ठोस और भारी हो गया है

    वह बार-बार यही कहता है

    तुम अपनी क़मीज़ पहाड़ पर सूखने के लिए डाल दो

    मैं रास्ते के एक मोड़ पर खड़ा हूँ

    वह मुझे उम्मीद से देखती है

    फिर जैसे व्यंग्य से कहती है—

    'कुलीन वेश्याओं के आशिक़

    तुम रोशनी से डर जाओगे'

    मोड़ पर बैठा मोची

    धूप और उसकी परछाइयाँ जूतों में सिलता रहता है

    मैं उसे आँखें चमकाने को देता हूँ

    जैसे कि कहता हूँ

    तुम इसमें परछाइयाँ सिल दो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रवि प्रकाश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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