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जीवन में विलास और सुख देना चाहिए कविता को

jiwan mein wilas aur sukh dena chahiye kawita ko

ज्याेति शोभा

ज्याेति शोभा

जीवन में विलास और सुख देना चाहिए कविता को

ज्याेति शोभा

और अधिकज्याेति शोभा

    विद्यापति को याद करके देखो

    यह नगर उनकी पदावली का अंश जान पड़ेगा

    माघ के दूसरे पखवाड़े में

    गांगुली मोशाय के आँगन में निशंक दाने चुगते कबूतर

    चुंबन लेते प्रेमी

    अग्नि होते पलाश में

    और कृष्ण का लावण्य लिखते विद्यापति में क्या भेद है

    यह बताना बड़ा कठिन है

    सज्जा इतनी वृहद है शृंगार का सामान लगाए टपरी में

    कि बिहार से आया एक मनुज ठिठक कर सोचता है

    मेरी नूतन ब्याहता के उरोजों पर झूलती यह सीपी की मुक्तामाला कितनी मोहक लगेगी

    जैसे गौरी की सघन केशराशि का सम्मोहन आता है वैष्णव साहित्य में

    गंगा की निर्वसन काया पर

    वैसे ही आता है मेघ

    अंधकार में रस भरता है

    हृदय वाले स्थान को सूखने नहीं देता है

    मंडी से गुज़रते संसाधन की जुगत में जीव, जीव को देखता है और

    घंटों चर्चा करता है

    विद्यापति के काव्य-विन्यास पर

    कि अपूर्ण जीवन में विलास और सुख देना चाहिए कविता को

    अध्यात्म चाहे दे दे

    लखिमादेवी के सान्निध्य

    राधा के लालित्य और

    राम के विरह-गान में जो विद्यापति है

    वह भटके पथिक की तरह धूल में सराबोर होता जाता है

    राह पूछता है किंतु

    सराय नहीं जाता, थैली भर मालती तौलवाता है

    किसी गृहस्थन के लिए

    वही खड़ा रहता है

    बिष्णुपुर के बाँस-वन में

    दरबारी रसिकों की भाँति

    निर्मोही जगत पर

    धारासार बरसता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्योति शोभा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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