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जीवन का सम

jivan ka sam

कुमार मंगलम

कुमार मंगलम

जीवन का सम

कुमार मंगलम

और अधिककुमार मंगलम

    स्मृतियों के धूमिल होते इस वक्त में

    कुछ याद अमिट हैं

    समय का धूल

    समुद्र की लहरें

    शिलाओं से टकराती जल-तरंगे

    और भूल जाने की विवशता

    सभी अचूक ढंग से याद रहती हैं

    समय कुरेदता है

    बार बार उन्हीं ज़ख़्मों को

    समुद्र भी वही याद दिलाता है

    शिलाएँ कमज़ोर होती गई हैं

    किंतु अडिग हैं

    नदी की विवशता है कि हरेक बरसात के बाद बदल ले राह

    सूचनाओं से आतंकित इस समय में

    वे बेचैन स्मृतियाँ ही सहचर हैं

    स्मृतियों को सोचते हुए फटता है सर

    चिकित्सक उसे माइग्रेन कहता है

    और वह मुझे जीने का रसद लगता है

    कि जीना : भारी पत्थर का बोझ लिए

    एक कमज़ोर का

    तुम से

    तुम्हारी स्मृतियों से

    दूर जाते हुए नहीं

    उनके साथ-साथ

    मुक्त होते

    उसी से लिपटते

    उन्हीं का होते

    जीना एक संगीन मामला है

    और दिमाग़ की नसें फटती जा रही हैं

    बस एक हृदयाघात और सम पर आता : जीवन

    स्मृतियाँ विलंबित लय है

    वर्तमान मध्य लय

    और तीव्र पर जाकर ही सम आएगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुमार मंगलम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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