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जान-पहचान के दायरे से बाहर

jaan pahchan ke dayre se bahar

कुशाग्र अद्वैत

कुशाग्र अद्वैत

जान-पहचान के दायरे से बाहर

कुशाग्र अद्वैत

और अधिककुशाग्र अद्वैत

    निहायत ग़ुरबत के दिनों में भी

    माँ ने बचा रखे होते हैं

    हमारी छोटी-मोटी ज़रूरतें

    पूरी कर सकने लायक़ पैसे

    हम माँ को

    इस संपन्नता से जानते हैं,

    बाबा को जानते हैं

    उनकी सचाई से

    अपने पड़ोसी को जानते हैं

    उसकी ख़ुशमिज़ाजी और शराबनोशी से

    वह जो दुकान है लंका पर

    सब उसे जानते हैं ऐसे

    कि वहाँ क्लासिक्स भी

    रद्दी के भाव में मिलती हैं

    यह घर जानता है मुझे

    मेरी भूख से

    पूरे गीत तो कभी याद नहीं रहते

    हर गीत को

    स्मृतियों के अहाते में

    बरबस छिटक आई

    किसी छबीली पंक्ति से जानता हूँ

    दोस्तों को जानता हूँ

    उनके पसंदीदा रंगों और फूलों से

    तुम्हें

    तुम्हारी आवाज़,

    तुम्हारी अभीप्सा,

    तुम्हारे स्पर्श से जानता हूँ

    और कितना ही जानता हूँ!

    जितना सब जानने का दावा करते हैं मुझे

    मैं ख़ुद को उससे बहुत कम जानता हूँ

    हर रात सोने के पहले

    याद से देखता हूँ सपने

    किसी ऐसी जगह जा रहने के

    जहाँ कोई जानता हो मुझे

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुशाग्र अद्वैत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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