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ईश्वर

ishwar

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

    ईश्वर हमेशा हमसे ऊपर रहता है

    हम आसमान की ओर इशारा करते हुए कहते हैं

    सब कुछ उसकी कृपा से चल रहा है

    या वह सब कुछ देख रहा है

    लेकिन हम जानते हैं वह हमसे नाराज़ रहता है

    हम उसे ख़ुश रखने की कशिश करते हैं

    तब भी उसके क्रुद्ध रूप दिखते रहते हैं बादलों के बीच

    तीखी हवा मैं जंगल जाने वाले रास्तों पर

    या रात में तारों के बीच

    वह चाहता है हम बार-बार उसे धूप-दीप-नैवेद्य दें

    साल में दो-चार बार बकरों की बलि दें

    हम अभ्यर्थना करते हैं ईश्वर

    हमें धन-धान्य दो योग्य संतति दो

    बलिष्ठ बैल दो जो खेतों में देर तक हल चला सकें

    हमारे घरों को मज़बूती दो जिन्हें बार-बार छवाना पड़े

    मौसमों का सुखद चक्र दो

    तेज़ घाम के बाद वर्षा बर्फ़ के बाद खिली हुई धूप दो

    रात में आसमान में तारों की चमकती हुई छत दो

    लेकिन ईश्वर हमें देता है अक्सर अवर्षण अक्सर दुर्भिक्ष

    अक्सर आँधी-तूफ़ान अकाल मृत्यु

    रात के तारे जो बुझते और टूटकर आते हैं पृथ्वी पर

    हम कहते रहते हैं ईश्वर

    इन काले पहाड़ों को स्याही की तरह समुद्र के पात्र में घोलें

    और समूची पृथ्वी के काग़ज़ पर

    वाणी की देवी रात-दिन लिखने बैठे

    तब भी कठिन है तुम्हारे गुणों का बखान

    लेकिन ईश्वर कभी ख़ुश नहीं होता

    वह अक्सर हमें शाप देने की मुद्रा में खड़ा रहता है

    कई बार हम मनुष्यों की वजह से

    उसे अपना सिंहासन डोलता हुआ महसूस हुआ है

    वह मौक़ा खोजता रहता है कि कब कैसे अमंगल कर सके

    कैसे हमारी फ़सलें बर्बाद हों

    कब हम अपने घर छोड़कर जाने को विवश हो जाएँ

    हम बार-बार उसे पूजते हैं

    कभी-कभी लगता है वह अचानक ख़ुश हो उठा है

    और मुस्कुरा रहा है

    और वरदान दे रहा है

    लेकिन यह कुछ ही देर के लिए होता है

    महज़ एक ख़याल कि हमारे अलावा कोई और भी है

    जो हमारा भला चाहता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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