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इन दुर्दिनों में भी

in durdinon mein bhi

ऋतु कुमार ऋतु

ऋतु कुमार ऋतु

इन दुर्दिनों में भी

ऋतु कुमार ऋतु

और अधिकऋतु कुमार ऋतु

    इन दुर्दिनों में भी

    मैं चला जाता हूँ

    फलाँगता हुआ टीले-पहाड़

    और कुछ बर्फ़ीले आसमान

    मैं इन सब पर से

    गुज़र जाता हूँ एक साथ

    इन दुर्दिनों में भी

    मैं एक असमय यात्रा तय करता हूँ

    राहों में मिलते हैं

    अवसादी घाटियों के अनंत विस्तार

    अनचाही मौत से गूँजते हुए सुनसान

    इनमें ही रक्त सनी चीख़ों जैसा

    बजता है त्रस्त जीवन

    सुनाई देता है अनहद नाद-सा आर्तनाद

    कि अब कोई रास्ता तक नहीं बचा

    जिए जाने का

    इसलिए मैं भयभीत-सा घुस जाता हूँ

    प्राचीन गाथाओं महागाथाओं में

    और तय कर आता हूँ

    असमय यात्रा का एक अनंत विस्तार!

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस नाउम्मीदी की कायनात में (पांडुलिपि)
    • रचनाकार : ऋतु कुमार ऋतु

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