मेरी भानजी के लिए उसके दाँत,
दाँत नहीं ‘टीथ’ हैं
सिर, सिर नहीं ‘हेड’ है
नाक उसके लिए ‘नोज़ू’ है
और आँखें उसकी ‘आइज़’ हैं
‘हैंड्स’ कहते ही वह अपने हाथ हवा में लहराने लगती है
और ‘चीक’ बोलते ही तर्जनी से अपने गालों की जैली में
गड्ढा कर लेती है वह
आज से कुछ बरस पहले
अक्सर मुझे माताओं-पिताओं से शिकायत रहती थी
कि अँग्रेज़ी की पूँछ पकड़कर क्यों दौड़ते रहते हैं वे
लेकिन कई वर्षों तक
हिंदी का ख़ाली पेट लेकर घूमने के बाद
मैं अँग्रेज़ी के ‘फुल स्टमक’ का हामी हो गया हूँ
अब मैं जैसे ही कहता हूँ अपनी ‘नीस’ को—‘स्टमक’
वह झबला उठाकर अपना पेट सहलाने लगती है
लेकिन जब भरा होता है उसका पेट
और नहीं पीना होता उसे दूध
तो दाएँ-बाएँ हिलाते हुए अपनी गर्दन ज़ोर से कहती है वह—
नहीं
उसने नहीं सीखा अँग्रेज़ी का ‘नो’
उसने हिंदी के ‘नहीं’ को अपनाया
अपनी भाषा में ‘नहीं’ कहना
उसे बचाए रखने की ‘हाँ’ का सुखद संकेत होता है।
- रचनाकार : अंजुम शर्मा
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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