Font by Mehr Nastaliq Web

नीरवता

niravta

छा रही है रूस के मुख पर थकावट की उदासी,

छिपे, गहरे घाव की पीड़ा, नहीं जो व्यक्त होती,

एक ऐसी वेदना, जो मूक, सीमाहीन है, आशारहित है—

शीत नीलाकाश ऊपर, और नीचे दूरियों की धुँध फैली।

प्रात: आओ और पहाड़ी पर खड़े हो—

झलमलाती नदी से हल्का कुहासा उठ रहा है,

शांत, घन वनप्रात की छाया धरा घेरे पड़ी है—

दुख से जकड़ा हुआ दिल है, नहीं सुख की निशानी।

हिल रहे हैं नहीं नरकुल और मुँह बाँधे सवार खड़ी हुई हैं,

एक चुप्पी गगन में मँडला रही है,

एक गूँगापन धरा पर जड़ पड़ा है,

और कितनी दूर तक फैले हुए है चरागाह, नहीं पता है,

और सब पर एक नि:स्वन थकन बैठी ऊँघती है।

दिन ढले आओ—किरण की लाल लहरें

निम्न, पीतल घाटियों में बसे गाँवों को डुबाती

झुकी, धन वनराजि को अद्भुत बनाती,

मौन उनका और गहराती कि लगता,

दुख से जकड़ा हुआ दिल है, नहीं सुख की निशानी।

या कि लगता,

एक प्रेमी ने ललककर प्रेयसी से प्यार माँगा

किंतु पीड़ा का करुण उपहार पाया।

हृदय कर दे क्षमा, लेकिन हृदय मुर्दा हो गया है,

और अपनी मौत पर ख़ुद रो रहा है,

जानता यह भी नहीं क्यों रो रहा है।

स्रोत :
  • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 114)
  • रचनाकार : कान्स्तैंतीन बालमोंत
  • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
  • संस्करण : 1964

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY