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हमारी ग़रीबी

hamari gharibi

एंजेला एनिमा तिर्की

एंजेला एनिमा तिर्की

हमारी ग़रीबी

एंजेला एनिमा तिर्की

और अधिकएंजेला एनिमा तिर्की

    इस रास्ते से गुजरने वाले

    रोज़ मुझे यहीं बैठे देखा करते

    कभी किन्हीं की नज़रें घूरती हुई

    कई कुछ दूर चलकर

    आगे निकल जाने के बाद

    पलट कर ज़रूर देखते।

    मैं उनको देख सोचता

    ये लोग मुझे इस तरह क्यूँ देखते हैं?

    जहाँ तक मैं समझ पाता हूँ—

    मेरा ग़रीब होना इनको पसंद नहीं

    ये लोग नहीं चाहते कि

    इनके होकर गुजरने वाले रास्ते में

    मैं कभी नज़र आऊँ।

    लगा कि मेरे पुराने कपड़ों से

    ख़ुश्बू के बजाए बास आती है

    बच्चा हूँ शायद इसलिए

    अपनी नाक नहीं सिकोड़ते।

    लगा कि मैं कभी एक पैर नंगा रख लेता

    दूसरे पैर में कूड़े से उठाए चप्पल पहन लेता

    कभी-कभी दोनों पैरों में चप्पल होती

    लेकिन बिना मेल वाली।

    लगा कि मेरे बिखरे बाल

    मेरी बिखरी ज़िंदगी की तरह पसंद नहीं

    क्या कहूँ उनसे कि

    नहाने के भी पैसे लगते हैं जनाब

    बड़े शहरों में पानी की भी कीमत चुकानी पड़ती।

    लेकिन क्या करूँ?

    मेरी मज़बूरी थी रोज़ उस जगह पे बैठना

    अपने छोटे से पेट के लिए

    दिन भर टेढ़ी निगाहों का सामना करना।

    उस भीड़ से निकल कर

    एक शख़्स चलते-चलते आकर

    मेरे पास रुक गया,मेरे बगल में बैठा

    मुझे थोड़ा अजीब लगा

    थोड़ा सकपकाया

    ख़ुद को संभालते

    उनसे कहा—क्या चाहते मैं यहाँ से चला जाऊँ?

    न, बिल्कुल भी नहीं

    तुम हर दिन यहीं दिखाई दो

    सच्ची यही चाहता हूँ मैं

    वैसे एक बात पूछनी थी तुमसे

    तुम्हारी प्यारी मुस्कान का राज क्या है?

    उस मासूम ने ख़ूब मासूमियत से कहा

    कुछ ख़ास नहीं

    बस हमारी ग़रीबी ही हमारा सब कुछ है साब।

    स्रोत :
    • रचनाकार : एंजेला एनिमा तिर्की
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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