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गुम होता चेहरा (एक आम आदमी का)

gum hota chehra (ek aam adami ka)

राहुल द्विवेदी

राहुल द्विवेदी

गुम होता चेहरा (एक आम आदमी का)

राहुल द्विवेदी

चारों तरफ़ की भीड़ में

अक्सर ही एक चेहरा

जाना पहचाना-सा लगता है

और जब तक मैं उसके पास जा पाता

वह गुम हो जाता है

जाने क्यों

वह चेहरा

हर बार खींचता है मुझे

अपनी तरफ़

उसकी आँखों की बेचारगी

एहसास कराती है मुझे

अस्तित्व के लिए संघर्षरत लोगों के

ख़त्म होने वाली बेचारगी का

उसके चेहरे का पीलापन

जाने क्यों

खींच ले जाता है मुझे

श्मशान की तरफ़

जहाँ पर अनगिनत लाशों के ढेर की सफ़ेदी

और उनको कंधा देने वालों के चेहरे का पीलापन

अंतर स्पष्ट करते हैं

ज़िंदगी और ज़िंदा होने के बीच का

कभी-कभी तो मैं स्वयं को

उसी चेहरे में फ़िट पाता हूँ

और अक्सर ही

आस-पास के

सभी जाने-पहचाने चेहरे

एक-एक कर

उसी चेहरे में

मिलते नज़र आते हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : मै, तुम और ईश्वर (पृष्ठ 35)
  • रचनाकार : राहुल द्विवेदी
  • प्रकाशन : आपस पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
  • संस्करण : 2022

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