प्राचीन मिस्र की एक आदिम जाति का गीत
prachin misr ki ek aadim jati ka geet
रूपर्ट ब्रूक
Rupert Brooke

प्राचीन मिस्र की एक आदिम जाति का गीत
prachin misr ki ek aadim jati ka geet
Rupert Brooke
रूपर्ट ब्रूक
और अधिकरूपर्ट ब्रूक
(दरियाई घोड़े के आकार की, इस्मत-इस्मत नामक देवी की मृत्यु पर)
स्थान : मंदिर
[अंदर : पुरोहितग]
वह थी कुरूप, झुर्रियों भरी, भारी भरकम? वह थी माता
वासनामयी, अतृप्त? किंतु थी एक मात्र आश्रयदाता!
दिन में अदृश्य, निश्शब्द, किंतु रातों में उसकी सीत्कार
सुन पड़ती थी
हम सहमे से, तम में उसकी इच्छाएँ पूरी करते थे
हम डरते थे!
[बाहर जनता]
वह हमको दु:ख पहुँचाती थी
औ' हम नत थे उसके आगे
फिर हँसकर हमें बुलाती थी—
लो भाग तुम्हारे फिर जागे!
दु:ख देती थी दु:ख हरती थी
अब क्या होगा? अब क्या होगा?
अब तो वह आसन ख़ाली है!
हम उसकी पूजा करते थे
पर वह अब मरने वाली है!
[अंदर : पुरोहितगण]
वह क्षुधाग्रस्त, वह शिशुभक्षिणी, पर क्या होगा उसके बग़ैर?
वह युवक-युवतियों को ले जाती रही मृत्यु के देश। ख़ैर...
जातियाँ थूकतीं रहीं हमें—हम घृणा अंग के पात्र रहे'
यह गौरव था—
वह भोजन दे, वह आश्रय दे, वह प्यार भरे, वह हनन करे—
और वही मरे?
[बाहर जनता]
वह शक्तिमती थी किंतु
काल है महाबली—
वह बहुत दिनों तक जियी
काल के आगे किसकी किंतु चली
अब क्या होगा? अब होगा क्या?
वह आसन बिल्कुल ख़ाली है
हम अब तक पूजा करते थे
अब वह भी मरने वाली है!
- पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 95)
- संपादक : धर्मवीर भारती
- रचनाकार : रूपर्ट ब्रूक
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
- संस्करण : 1960
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