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आज़ाद लड़की

azad laDki

वंदना गुप्ता

वंदना गुप्ता

आज़ाद लड़की

वंदना गुप्ता

और अधिकवंदना गुप्ता

    मैं नींद में देखता हूँ आकाश

    और चाँद के पास खड़ी एक कमसिन लड़की को

    जो आँखों में समंदर की प्यास लिए

    अपने सपनों को तलाशती

    उम्र दर उम्र

    उसकी चाहतों का आकाश

    लंबा होता जाता

    बचपन, किशोर, युवा से

    प्रौढ़ होते उसके सपनों की चादर

    फैलती जाती वितान-सी

    वह बिखेरती जाती अपने सपनों की लड़ियाँ

    आकाशी रास्तों पर

    मैं वर्षों से देखता हूँ

    नींद में चलते हुए उस लड़की को

    शहर में, क़स्बे में, गाँव में

    अपनी महत्वाकाँक्षा की जद्दोजहद में

    उलझते-सुलझते...

    जो छूना चाहती है अपने

    सपनों का आसमान

    चाहरदिवारी से निकलकर

    जीना चाहती है अपनी स्वतंत्र आरज़ूए

    करना चाहती है प्रेम अपनी शर्तों पर

    रोप देना चाहती है अपनी मयूरपंखी ख़्वाहिशें

    वक्त के सीने में लहू बनकर

    दौड़ना चाहती है लंबी रेश के घोड़े के माफिक

    आसमान के बीचों-बीच लहराना चाहती है

    अपनी आज़ादी का परचम

    शहर की, क़स्बे की, गाँव की

    वह आज़ाद लड़की

    जिसे मैं देखता हूँ अब नए लिबास में

    नए रंग भरते हुए...।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वंदना गुप्ता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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