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ग़ुब्बारा

ghubbara

राजीव कुमार तिवारी

और अधिकराजीव कुमार तिवारी

    उतनी हवा

    जितनी उसे फूला हुआ

    बनाने के लिए ज़रूरी है

    अपने पेट में भरकर

    एक डोर से बँधा

    सृष्टि की बाँकि बची हवा में

    इठलाता हुआ

    लहराता रहता है ग़ुब्बारा

    उसकी यह हरक़त

    बच्चों के मन में

    लालच पैदा करने के लिए है

    किसी स्थान या उत्सव की शोभा

    बढ़ाने के लिए है

    या अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करना

    इसी तरह आता है उसको

    जब कोई बच्चा

    उसे पाने के लिए

    बड़ों से ज़िद करता है

    वह भी एकदम से मचल उठता है

    उनके हाथों में पहुँचने के लिए

    फूला नहीं समाता पहुँचकर

    बच्चों के हाथों तक पहुँचना

    ग़ुब्बारे की जीवन यात्रा में

    कोई तीर्थ है

    अंयत्र कहीं अगर वह

    उपस्थित किया जाता है

    तो एक ऊब

    एक थकान

    एक अनिच्छा

    एक विवशता

    थोड़ी देर में

    दिखने लगता है

    उसके हाव-भाव से।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजीव कुमार तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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