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घर की याद

ghar ki yaad

मारीना त्स्वेतायेवा

और अधिकमारीना त्स्वेतायेवा

    घर की याद! एक लंबे अर्से तक

    यातनाएँ सहूँगी!

    मुझे कोई कम चिंता नहीं है कि

    कहाँ, बिल्कुल अकेली रहूँगी।

    जीवित रहने के लिए कौन-सी ठोकरें खाना है

    घिसटते हुए बाज़ार से लौटते थैला थामे लादे हुए थकान

    उस घर को जिसको मैं ख़ुद नहीं जानती कि मेरा है,

    एक अस्पताल या फ़ौजी बैरक़ के समान।

    कम चिंता नहीं कि किन चेहरों के बीच

    गिरफ़्तार सिंह की तरह गुर्राना है मुझको

    या किस मानवीय परिवेश से अनिवार्यतः

    उखाड़ा जाना है मुझको—

    धकेली जाना है स्वयं अपने अंदर, अपनी भावनाओं की

    विशिष्टता के अंदर,

    कम्चात्का के ऐसे भालू की तरह जिसके पाँव तले नहीं बर्फ़ की

    चादर,

    और कहाँ-कहाँ मुझको निभाना है दूसरे लोगों का साथ

    (आशा व्यर्थ नहीं है)

    और कहाँ पर मुझको विनम्रता दिखानी है, मेरे लिए सब कुछ है

    बराबर!

    और ही मुझे फाँस पाएगी मेरी मातृभाषा की

    दूधिया मिठास

    मुझे चिंता नहीं कि किस भाषा के कारण

    समझ नहीं पाएगा कोई राही मेरी बकवास!

    (क्या फ़र्क़ पड़ता है जब पाठक पचा जाते हैं

    लाखों टन काग़ज़, और ग्वाले तमाम गपशप...)

    वह है बीसवीं सदी का इनसान

    और मैं हूँ किसी भी सदी में अनखप!

    उस ठूँठ की तरह

    जो खड़ा रह गया है गली बेजान,

    सब लोग, सब चीज़ें एक समान हैं,

    मगर शायद सबसे अधिक समान—

    और सबसे अधिक अपना है—मेरा अतीत।

    सभो चिह्न, सभी पहचानें और सभी तारीख़ों की शह—

    मुझसे दूर हो गई हैं मानो छूट गई हैं हाथ से :

    मेरी आत्मा पुनर्जन्म लेती है किसी और जगह।

    मेरी सुरक्षा करने में असमर्थ रहा है मेरा वतन इतना

    कि अत्यंत तीखी नज़रों वाला जासूस अगर आएगा

    और छानेगा मेरी आत्मा एक छोर से दूसरे छोर तक

    तब भी मेरा कोई जन्मजात चिह्न खोज नहीं पाएगा!

    हर घर मेरे लिए है अजनबी, हर मंदिर है वीराना,

    और अब किसी भी बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, सब कुछ है

    बराबर

    फिर भी जब मैं अपनी राह चलती हूँ, मैं प्रवेश कर जाती हूँ

    किसी झाड़ी में, विशेषकर किसी एश वृक्ष के अंदर...

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक रूसी कविताएँ-1 (पृष्ठ 65)
    • संपादक : नामवर सिंह
    • रचनाकार : मारीना त्स्वेतायेवा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1978
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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