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गली में डाक्टर दंपती और उनकी नई कार

gali mein Daktar dampti aur unki nai kar

ऋतुराज

ऋतुराज

गली में डाक्टर दंपती और उनकी नई कार

ऋतुराज

और अधिकऋतुराज

    रोगी काया के भीतर से निकाली है

    सोने की पिटारी उन दोनों ने

    अपाहिज दुनिया की पीली आँखों से

    चुराए हैं अंतरिक्ष के सपने

    डाक्टर दंपती ने छीना है स्वास्थ्य-लाभ और वैभव

    दु:ख की गाड़ी में फँसे मुसाफ़िर इंतज़ार करते हैं

    उनके ठहरने का

    मैं कोई बुद्ध नहीं था कि मृत्युपूर्व की यंत्रणा देखकर

    सुनकर रौरव का हाहाकार

    दार्शनिक हो जाता

    मेरे घर के सामने का पेड़ तो जाने कब का

    कुल्हाड़ी की चोट से धराशाई हो चुका था

    फ़िलहाल मैं खड़ा था, स्टेशन पर

    रुकी इस पीड़ा की गाड़ी को देखता

    हर बुढ़िया थी मेरी माँ

    हर बूढ़ा फ़ालिज में चीख़ता मेरा बाप था

    शराब पीकर पीट रहा था औरत को

    वह मेरा भाई था

    चटाई में लपेटे बच्चे की लाश

    चुपचाप लिए जा रहे थे जो लोग

    वे सब मेरे मोहल्ले के लोग थे

    उस डाक्टर दंपती को चाभी मिल गई थी स्वर्ग की

    नरक की गलियों के बीच तैरती उनकी नई कार के

    फाटक पर लिखा था—

    ‘अपनी आँखें दान करके मनुष्यजाति की सेवा करें’

    मेरी आँखों, तुम्हें हुआ क्या है?

    संपन्न चतुर लोगों द्वारा प्रयुक्त सेवाभावी भाषा का

    गूढ़ार्थ तुरंत पढ़ लेती हो

    मेरी किडनियों, शुद्धिकरण के लिए तुम कितनी सक्षम हो!!

    मेरी बुद्धि, तुम कितनी प्रखर हो कि अधिक दु:खियों के बीच

    पहचान लेती हो कम दु:खियों को!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : आशा नाम नदी (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : ऋतुराज
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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