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पूँजीवादी समाज के प्रति

punjiwadi samaj ke prati

गजानन माधव मुक्तिबोध

गजानन माधव मुक्तिबोध

पूँजीवादी समाज के प्रति

गजानन माधव मुक्तिबोध

और अधिकगजानन माधव मुक्तिबोध

    इतने प्राण, इतने हाथ; इतनी बुद्धि

    इतना ज्ञान, संस्कृति और अंतःशद्धि

    इतना दिव्य, इतना भव्य, इतनी शक्ति

    यह सौंदर्य, वह वैचित्र्य, ईश्वर-भक्ति,

    इतना काव्य, इतने शब्द, इतने छंद—

    जितना ढोंग, जितना भोग है निर्बंध

    इतना गूढ़, इतना गाढ़, सुंदर जाल—

    केवल एक जलता सत्य देने टाल।

    छोड़ो हाय, केवल घृणा औ' दुर्गंध

    तेरी रेशमी वह शब्द-संस्कृति अंध

    देती क्रोध मुझको, ख़ूब जलता क्रोध

    तेरे रक्त में भी सत्य का अवरोध

    तेरे रक्त से भी घृणा आती तीव्र

    तुझको देख मिलती उमड़ आती शीघ्र

    तेरे हास में भी रोग-कृमि हैं उग्र

    तेरा नाश तुझ पर क्रुद्ध, तुझ पर व्यग्र।

    मेरी ज्वाल, जन की ज्वाल होकर एक

    अपनी उष्णता से धो चलें अविवेक

    तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ

    तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 11)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : गजानन माधव मुक्तिबोध
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1984

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    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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