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भविष्यानुगता प्रेयसी से

bhawishyanugta preyasi se

प्रज्वल चतुर्वेदी

प्रज्वल चतुर्वेदी

भविष्यानुगता प्रेयसी से

प्रज्वल चतुर्वेदी

और अधिकप्रज्वल चतुर्वेदी

    मेरी भविष्यम्भावी काल्पनिक प्रियतमे!

    जिसे तुम ढूँढ़ती फिरो

    दुःख कोई उपमा नहीं है

    जो तुम्हें किसी बीतते साँझ को मिले

    या पैरों के नीचे सूखे पत्तों में तुम्हें

    दु:ख दिखाई दे मुस्काता हुआ पतझड़ में

    तुम्हें दुःख तमग़े की तरह मिलेगा

    और तुम्हें रात के करुणा भरे अँधेरे में

    लगेगा की तुम्हारा तमग़ा सबसे बड़ा है

    दुःख तुम्हें आगंतुक की तरह मिलेगा

    जब तुम्हारे पास घर नहीं होगा

    किसी कल्पना जितनी सुंदर तुम

    उतनी ही असंभव हो

    तुम्हारी याद्दाश्त तुम्हारे वादों की तरह कमज़ोर है

    और शीशों के सपने बनाकर

    तुमने पत्थरों को रखवाली दी है

    तुम अनोखी हो

    लेकिन अद्भुत नहीं

    निराश नीत्शे ने एक दिन कहा :

    'मैंने प्रतिध्वनि सुननी चाही

    मुझे प्रशंसा सुनने को मिली'

    नीत्शे को एक बार

    भविष्य की तरफ़ मुँह करके बोलना चाहिए था

    सुदूर खड़ी अलके!

    दुनिया में बहुत सारा दुःख

    बहुत सारी पीड़ाएँ

    ठीक से समझा नहीं पाईं ख़ुद को

    या दुःख समझा ही नहीं गया

    तुमसे

    उनमें से एक पीड़ा है कविता

    जिस पर तुमने बहुत वाह-वाह करते हुए

    एकाध आँसू बहाए

    और दूसरी कविता के साथ भी यही किया

    तुमने जब कहा कि भविष्य ज़रूरी है

    तो मैंने मना कि हाँ! तुम ज़रूरी हो

    इसलिए मैंने एक भविष्य बनाना शुरू किया

    कभी-कभी ऐसा हुआ कि तुमने

    मेरे और भविष्य के बीच में

    अपने बाल फैला कर अँधेरा कर दिया

    तब लगा

    तुम शायद मुझसे मिलने नहीं आओगी कभी

    मैं देखता रहा तुम्हें सपने की तरह

    लेकिन तुमने कहा कि

    कभी कभी तो जागना पड़ेगा

    सपनों में तुम्हें पाकर

    मैं रात भर

    काली ठंडी दीवार से

    चिपका रहा छिपकली की तरह

    नींद?—

    वह एक फटीचर कुर्सी पर

    पड़ी हुई मेरे आने का इंतज़ार करती रही

    भविष्य शब्दों का अच्छा पारखी है

    तुम भी हो

    लेकिन मेरे शब्द नए तरह के हीरे हैं

    जिन्हें तुमने अभी नहीं देखा है

    मैंने खुलकर कभी

    प्रेम पर कोई कविता नहीं लिखी

    क्योंकि तुमने मुझसे

    कभी खुलकर प्रेम नहीं किया

    नीत्शे ने फिर कहा

    'प्रेम में किया गया सब कुछ

    अच्छाई और बुराई के परे होता है'

    मेरी भविष्यानुगता प्रिये!

    तुम ही यदि मेरा भविष्य हो तो

    तुम मेरी तरफ़ आओ तो भी

    मैं तुम्हारी तरफ़ आता जाऊँगा

    एक दिन पहुँचा हुआ मिलूँगा तुम्हें

    हाँ!

    क्योंकि सिर्फ़ मैं चल रहा हूँ

    इसलिए थोड़ा वक़्त लगेगा

    क्योंकि लंबा रास्ता अकेले तय करना है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रज्वल चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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