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सरोज-स्मृति (एन.सी. ई.आर.टी)

saroj smriti (en. si. ii. aar. tee)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

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सरोज-स्मृति (एन.सी. ई.आर.टी)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

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    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    देखा विवाह आमूल नवल,

    तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।

    देखती मुझे तू हँसी मंद,

    होंठों में बिजली फँसी स्पंद

    उर में भर झूली छबि सुंदर,

    प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर

    तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,

    विश्वास-स्तब्ध बंध अंग-अंग,

    नत नयनों से आलोक उतर

    काँपा अधरों पर थर-थर-थर।

    देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति

    मेरे वसंत की प्रथम गीति—

    शृंगार, रहा जो निराकार

    रस कविता में उच्छ्वसित-धार

    गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग

    भरता प्राणों में राग-रंग

    रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,

    आकाश बदलकर बना मही।

    हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन

    कोई थे नहीं, आमंत्रण

    था भेजा गया, विवाह-राग

    भर रहा घर निशि-दिवस-जाग;

    प्रिय मौन एक संगीत भरा

    नव जीवन के स्वर पर उतरा।

    माँ की कुल शिक्षा मैंने दी,

    पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,

    सोचा मन में—“वह शकुंतला,

    पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।”

    कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,

    बैठी नानी की स्नेह-गोद।

    मामा-मामी का रहा प्यार,

    भर जलद धरा को ज्यों अपार;

    वे ही सुख-दु:ख में रहे न्यस्त,

    तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त;

    वह लता वहीं की, जहाँ कली

    तू खिली, स्नेह से हिली, पली,

    अंत भी उसी गोद में शरण

    ली, मूँदे दृग वर महामरण!

    मुझ भाग्यहीन की तू संबल

    युग वर्ष बाद जब हुई विकल,

    दु:ख ही जीवन की कथा रही

    क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!

    हो इसी कर्म पर वज्रपात

    यदि धर्म, रहे नत सदा माथ

    इस पथ पर, मेरे कार्य सकल

    हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!

    कन्ये, गत कर्मों का अर्पण

    कर, करता मैं तेरा तर्पण

    —(‘सरोज-स्मृति’ कविता का अंश)

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    सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

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    स्रोत :
    • पुस्तक : अंतरा (भाग-2) (पृष्ठ 10)
    • रचनाकार : सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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