पिता परदेस थे, ईजा थी मुलुक!
pita pardes the, ija thi muluk!
पिता
बरसात में
बादलों को
चौबीस तिल्लियों वाले
गोल काले छाते के
भीतर समेट लेते थे
ईजा थी कि अपने 'घोघ' में
समेटे रहती
चौमास की नदियाँ
जो छलछलाती थीं
उसके अंतस में
ईजा के घोघ के सामने
पिता का काला छाता
वैसे ही इठलाता रहता
जैसे 'सत्यमेव जयते' के ठीक उपर
अशोक का धम्मचक्र
पिता परदेस थे
ईजा थी मुलुक!
- रचनाकार : अनिल कार्की
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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