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गाँव की कठपुतली राजकुमारी

gaanv ki kathputli rajakumari

अनुवाद : दिनेश चमोला

विं: ला

विं: ला

गाँव की कठपुतली राजकुमारी

विं: ला

और अधिकविं: ला

    बाल चंद्रमा

    चमकता है चुपचाप

    स्वच्छ आकाश में

    मेरू मंदिर

    कौंध जाता है

    बिजली के बल्ब की तरह तेज़ी से

    उत्सव के समय

    नहीं था उनके पास

    पिछले वर्षों में रंगमंच पर

    प्रदर्शन का कार्यक्रम

    लेकिन इस वर्ष है

    उनके पास

    पुतली का नाच

    पुतली के मंच पर

    राजकुमारी की कठपुतली को

    पहनाए गए हैं सुंदर वस्त्र

    वह गाती है

    एक सुंदर गाना

    क्योंकि

    सोने का-सा धान

    इकट्ठा हो जाती है

    पहाड़ियों की तरह

    फ़सल कटने के बाद

    समेटने लगता है वह

    आग जलाने के लिए लकड़ी और बाँस

    अथवा

    सुनहरी खेती के लिए करता है गुड़ाई

    उगाता है वह

    मटर, सेम, अनाज और कपास

    बरसात से सर्दी तक

    सर्दी से गर्मी तक

    ख़ुशी और नई शक्ति के साथ

    जो फैल जाती है तीनों ऋतुओं में

    देता है किसान

    अन्न सारे विश्व को

    उगाता है धान और चावल

    जैसे बढ़ती है

    उसकी शक्ति और क्षमता

    इसी से ही

    महक उठा है सारा बर्मा

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 182)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : विं: ला
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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