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चंदा के हलवाहे

chanda ke halvahe

अनुवाद : सुरेश सलिल

रादोवान पी. स्वेत्कोव्स्की

अन्य

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और अधिकरादोवान पी. स्वेत्कोव्स्की

    घोड़पुच्छी-रेशों के बोरों में

    हलवाहे सहेजते हैं अपना अनाज,

    अंडे देने से पहले

    तारों पर चोंचे मार-मार

    मैदानी आसमान को छलनी करती है मुर्ग़ी

    जबकि बहती घाटी के ऊपर चंदा दुलकती है ऐसे

    जैसे आसमान की तरफ़ फेंकी गई सुनहरी गेंद

    घाँघरे को ऊपर चढ़ाए दौड़ती है वह नदी के साथ

    मछलियों के साथ आँख-मिचौली का खेल खेलती।

    भोर में विलो वृक्षों को चमकाती हुई

    दौड़ती है बाद में मैदान के ऊपर।

    खेतों में—से हलवाहे अँगुसियों से चंदा को पिछुआते हैं

    और उसकी आँखें चिनगारियाँ उगलने लगती हैं—

    मैदान पर चंदा छोड़ती है अपने आँसू

    और झाड़ियों में अपना सोना

    अगली रात हलों की मूंठे चमकाने के लिए।

    हलवाहे रात में गाड़ते हैं अपना अनाज,

    अँगुसियों से चंदा को मार गिरा

    खोंस लेते हैं अपने हलों की नसी पर उसकी देह

    ताकि कूँड़े गहरी खुदें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 456)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : रादोवान पी. स्वेत्कोव्स्की
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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